Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 31
________________ २४ अनुसन्धान-७४ (१७) वस्त्र विशेषइ पहिरीइ, अनइ रूअडां बहु आभरण रे । नाटक सार सोहावीइ, मनि आणी सामी शरण रे ॥१७|| केव० ॥ नाटकसार सोहामणउं, अनइं करता खपीइं कर्म । सतरभेद पूजा इसी, भाषइ स्वामि सुधर्म ॥ स्वामी भाषइ सुधर्म, जीणइ पामिउं सिद्धिशर्म ॥१७|| पूजा सतरमी ॥ (१८) सात आठ पग ओसरइ करइ अट्ठोत्तर सु काव्य रे । डाबु ढींचण ऊचुं राखीइ, मस्तकि हाथ चडावि रे ॥१८॥ केव० ॥ इंद्रतणी परिई ऊचरइं, अनइ नमोत्थुणं मनठाणि रे । भाव खरू जउ आदरइ, तु वरीइंवो केवलनाण ।। स्वामी वरीइ केवलनाणि, एह पूजाविधि जाणि रे ॥१८॥ इति सतरभेदपूजाविधिः समाप्तः ॥ श्रा० फकूपठनार्थं ॥ नीमाल - निर्माल्य गलाल - गुलाब ऊठ - साडा त्रण केटलाक शब्दो रोमंचीइ - रोमांचित थाय टोडर - हार धूआ - ध्रुवा उकली - ओकळी (?) घांटडी - घंटडी दूहाः अथ अष्टप्रकारी पूजा लिख्यते ॥ कर्ता : उद्योतसागरजी गंगा मागध नीरनिधि, औषध मिश्रित सार । कुसुमैं वासित शुचि जलें, करो जिनस्नात्र उदार ॥१॥ मणि कनकादिक अड बिधि, करि भर कलस सफार । शुभरुचि जे जिनवर-न्हवणे, तसु नहि दुरित प्रचार ॥२॥ ढालः

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