Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान-७४
वासविशेष करी नवु, पूजउ ते प्रभु-पाय । वली वली किहां पामीइ, त्रिभुवनकेरु राय ॥ स्वामी त्रिभुवनकेरु राय, अनइ पामुं ते पुर ठाय ॥८॥ पूजा आठमी ॥
सामी ऊपरि झलहलइ, धज पंचवरण उदार रे । घमघमती घणुं घूघरी, बहु घांटडी नाद अपार रे ॥९॥ केव० ॥ धजआरोपण विधि करी, अनइ शबद वाजंति ।। ऊठ कोडि रोम उल्लसइ, अनइ पुहुचइ ते मननी खंति ।। [स्वामी पुहुचइ ते मननी खंति,] धज सारी सामी चडंति रे ॥९॥
पूजा नउमी ॥
(१०) माणिक हीरा मेलवी, अनइ मोतीना मंडाण रे । सोवनमइ आभरण अपूरव, सोहइ त्रिभुवन भाण रे ॥१०॥ केव० । त्रिभुवन-भानु निहालतां, निरमल थाइ चित्त । सार सरोमणि जे करइ, भूषण खरा जडित्त । स्वामी भूषण खरां जडित्त, मनरंगि चडावु नित्त रे ॥१०॥ पूजा दसमी ॥
मोटी माला वाटली, माहि वर्णक सोभाग रे । मस्तक हुंती मुंकीइ, परमेश्वर नीज पाग रे ॥११॥ केव० ॥ परमेश्वर पाइ लहकंती, अनइ पेखं ते मोटी माल । परमानंदिइ पूजीइ, तीर्थंकर त्रिणि काल ॥ स्वामी तीर्थंकर त्रिणि काल, नित पूजन ते रूप विशाल रे ॥११॥
पूजा एकादशमी ॥
(१२)
पंचवरण कुसुमे भरी, प्रभु आगलि पूज सोहावं रे । परगट पुण्यतणउ गढ दीसइ, सूधी भावना साचउ रे ॥१२॥ केव० ॥

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