Book Title: Anekarth Ratna Manjushayam
Author(s): Hiralal R Kapadia
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

Previous | Next

Page 18
________________ ग्रन्थनाम 'ऋषभभक्तामरम् 'दुरियरयसमीरवृत्तिः जीवविचार - नवतच्च दण्डकटीका प्रस्तावना अप. 3 तेषां श्रीजिनचन्द्राणां शिष्यः प्रथमतोऽभवत् । गणिः सकलचन्द्राख्यो, 'रीहडा'न्वयभूषणः ॥ १० ॥ तच्छिष्य समयसुन्दर सदुपाध्यायैर्विनिर्मिताध्यायैः । कल्पलतानामाऽयं मन्थश्चक्रे प्रयत्नेन ॥ ११ ॥ प्रक्रिया हैमभाष्यादि, पाठकैश्च विशोषिता । हर्पनन्दनवादीन्द्रः, चिन्तामणिविशारदैः ॥ १२ ॥ राज्ये श्रीजिनराजसूरि सुगुरोर्बुद्ध्या जितस्वर्गुरोः । Jain Education International ... *** ... राजन्ते जिनराजसूरिगुरवस्ते साम्प्रतं भूतले ॥ १९ ॥ ... युवराजे जिनसागरसूरिवरे विजयिनि प्रकृतिसौम्ये ॥ २० ॥ इति श्रीसमय सुन्दरोपाध्यायविरचिता कल्पलतानाम्नी कल्पसूत्रटीका समाप्ता ।" १ अस्याचान्ति मे पधे यथा "नम्रेन्द्रवन्द्र ! कृतभद्र ! जिनेन्द्रचन्द्र - ज्ञानात्मदर्श परिदृष्ट विशिष्टविश्व ! । स्वन्मूर्त्तिरर्त्तिहरणी तरणी मनोशे-वालम्बनं भवजले पततां जनानाम् ॥ १ ॥" “श्रीमन्मुनीन्द्रजिनचन्द्र यतीन्द्रशिष्य- पूर्णेन्दु शिष्य समयादिमसुन्दरेण । भक्तामरस्तवनतुर्यपदं समस्या - काव्यैः स्तुतः प्रथमतीर्थपतिर्गृहीत्वा ॥ ४५ ॥” २ श्रीजिनवल्लभमुनीशैः नानाच्छन्दस्तु ४४ पद्यात्मकस्य प्रणीतस्य वीरचरितस्तवस्य प्रारम्भिकपदानी मानि, सम्पूर्ण पद्यं तु यथा "दुरियरयसमीरं मोहपंकोहनीरं, पणमय जिणवीरं निजियाणंगवीरं । भयभडपतिकूलं तस्स मुक्खाणुकूलं, चरियमिह समूलं किंचि कित्तेमि भूलं ॥ १ ॥” वृष्यादो भयमुलेख:--- "नत्वा वीरजिनेन्द्रं दुरियरयसमीरस्य च वृत्तिमहम् । अतिसुगमामिह वक्ष्ये शीघ्रं तस्यार्थबोधार्थम् ॥ १ ॥ श्रीजिनचन्द्र गणाधिप शिष्यादिमसकलचन्द्रगणिशिष्याः । प्रवदन्ति समयसुन्दरनामानः पाठकाः प्रकटम् ॥ २ ॥ " ३ भावनगरस्य श्री आत्मानन्दजैनसभाऽन्तर्गतमुनिराज श्री भक्तिविजय भाण्डागार सरकजी व विचार- नवतरव-दुण्डकसटीक प्रतिप्रान्तेऽयमु लेख: १७ "संवति रस्य (?) निधिगुहमुख सोम (१६९६ १) मिते नभसि कृष्णपक्षे च । 'अमदावादे' 'हाजापटेल 'पोलीस्थशालायाम् ॥ ३ ॥ श्रीमत्‘खरतर'गच्छामीश्वरजिनचन्द्रसूरि शिष्योऽभूत् । गणिसकलचन्द्रनामा 'रीहड'गोत्री च पुण्यात्मा ॥ ४ ॥ तच्छिष्यसमय सुन्दर एतां वृत्तिं चकार चारुतया । अतिसुगमां च सुबोधरं पठन्तु भो पाठयन्तु द्वा ॥ ५ ।। " For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180