Book Title: Anekarth Ratna Manjushayam
Author(s): Hiralal R Kapadia
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्रीलक्ष्मीकल्लोलगणिकृतम् भूवाः परागपुरुषेषु कृपां दधानो
मायापरागवनितावधवैनतेयः । यः कोपरागरहितस्त्वमसीन ! तेन
सेवे भवन्तमपैरागमशैलवज्रम् ॥ ७॥-वसन्त० ध्वस्तोपरागपरभागविभूपिताङ्गं
सूरापरागमसमीकृतकर्मधर्मम् । पुण्यापरागजनदत्तभवं भजेयं
देवाऽपरागणितलक्षणसञ्चयं त्वाम् ॥ ८॥-, .. सेवाऽपरागणितसौख्यकरं श्रयामि
हृत्तापरागहरणं करणं गुणानाम् । । प्रोद्यत्परागतिगतं शरणं जनाना.
मिष्टार्थसाधनसुपर्वपैरागकल्पम् ॥ ९॥-, तेजोविराजितपरागसमीपराग
द्वेषच्छिदं धनहयद्विपरागहीनम् ।। गेमे(ये) सति द्रुतपराग! नमस्करोमि . गेस्थे(ये?) जयेऽकलितपापपरागमाशु ॥ १० ॥-, • गेस्थेजिते जननमृत्युजरापरागं
मां देहि तच्छिवपदं विलसत्परागम् । रान्नेहतस्मरपरागपकोपराग
रिक्तं परागणधरस्थितिकार्यकारिन् ! ॥ ११ ॥-, पस्था(?)ङ्गदेवकृतचन्दनसत्परागो
यो द्वापरागमगिरोऽस्ति न जञ्जपूकः । गेयं विधाय कृतदुष्कृतसम्पराग__ मीडे प्रतीतमपरागमभिख्यया तम् ॥ १२ ॥-, गेपानगे जितपुनर्भवभापराग
रास्थानके तमुदिते भुषने पराग!।. .. गेशे कृते निहतमोहमहापराग! . .
गेस्थे पणे कुरु सुखं शमधीपराग! ॥ १३ ॥-,
पररानिकसिदान्तपर्वतभेदने पद्धमिव वनम् । २ मोक्षगतिप्राप्तम् ।
कल्पवृक्ष
।
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