Book Title: Anekarth Ratna Manjushayam Author(s): Hiralal R Kapadia Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar FundPage 16
________________ ग्रन्थनाम विशेषसङ्ग्रहः विसंवादशतकम् गौतमपृच्छारास (गू. ) गाथा सहस्री (प्रा.) जंयतिहुयणवृत्तिः नवतच्चवृत्तिः Trailers (गू.) दशवैकालिकषृत्तिः थावच्चाचोपाइ (गू.) व्यवहारशुद्धिचोपाइ ( गू. ) प्रस्तावना ग्रन्थमानम् ३३५० Jain Education International रचनासंवत् १६८५ 11 १६८६ 19 १६८७ १६८८ 99 १६९१ 12 १६९३ १ "स्वच्छे 'खरतर 'गच्छे 'चान्द्र' कुले 'वज्र' नामशाखायाम् । - महारकजिनचन्द्रा युगप्रधानाख्यविरुदधराः ॥ १ ॥ तेषां शिष्या 'रीहड' गोत्रीयाः सकलचन्द्रगणिमणयः । तच्छिक्ष्यसमयसुन्दर नामानः पाठकप्रवराः ॥ २ ॥ तैः शिष्या दिहितार्थं प्रन्थोऽयं प्रथितः प्रयलेन । नाम्ना विशेषसङ्ग्रह इदुवसुशृङ्गार ( १६८५ ) मितवर्षे ॥ ३ ॥ राज्ये श्रीजिनराजसू रिसुगुरोर्बुद्ध्या जितस्वर्गुरो-राचायें जिनसागरे सुखकरे सौभाग्यभाग्याधि के 1: दर्श (मे) श्रीमति 'लूणकर्ण सरसि' श्रीसद्धदीप्तोदये, प्रन्थोऽयं परिपूर्णतामलभत श्रीफाल्गुने मासि च ॥४॥" २ " श्रीमत् ' खरतर 'गच्छे जिनसागरसूरिराजसाम्राज्ये । 'अणहिलपत्सन' नगरे संवति मुन्यष्टशृङ्गारे (१६८७)ः ॥ १ ॥ श्री समय सुन्दराख्याः पाठकविदुरा इमां व्यधुर्वृत्तिम् । मुनि सहजविमल पण्डित मेघ विजयशिष्यपठनार्थम् ॥ २ ॥ " ३ श्रीविजयधर्म लक्ष्मीशानभाण्डागारसत्कायां प्रत्यामुलेख एवम् - “श्री‘खरतर’गच्छकमलदिनिंदा युगप्रधान जिनचंदा मे । मृ० श्री जिनसिंघ सूरि सोभागी पुण्य दिसा जसु जागी बे । मृ० २१ प्रथम शिष्य श्रीपूज्य केरा सकलचंद गुरु मेरा घे मृ० तसु प्रसादि थया ग्रंथ पूर (ण) प्रगव्या सुजस पडूरा ने मृ० १४ सोलसह अठसठया ( १६८८ ) वरषे हुई चउपई घणो हरषे मे २६ मृगावतीचरित्र कला त्रिहुं खंडे पणे आणंद घमंडे बेबे ॥ २७ ॥ समयसुंदर चड् संघ आसीसी रिद्धि वृद्धि सुजगीसा बे २९ मृ०: संवत् १६९० वर्षे अश्वनि शुदि ३ दिने बृहस्पति वार ॥ श्री' परतर' गच्छे ॥ श्रीपूज्य श्री ५ जिनसिंघसूरि ॥ पं० श्रीलब्धिवर्धनमुनि । तत् शिष्यक्ष (१) । वा० श्रीषोषारिषि उपाध्याय श्री ५ शिवचंद्र तत्शिक्ष (2) मानकीर्तिलिखितं ।" ४ पुण्यपत्तनस्थप्राच्यविद्या संशोधनमन्दिरसत्कथावच्चाचोपद्मतिप्रान्ते * "संवत् सोल एकाणुं वरषै काती वदि श्रीज हर ने श्री ' भाइत' खारवा वाढई चौमासि रह्या सुदिहाडे बे से० २०. 'घरतर' गच्छ जिणचंदसूरीसा सकलचंद तसु सीसा मे समयसुंदर तसु सीसे प्रसिद्धा शिष्य प्रशिष्य समृद्धा मे ॥ २१ ॥" For Private & Personal Use Only १० www.jainelibrary.orgPage Navigation
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