Book Title: Anekarth Ratna Manjushayam
Author(s): Hiralal R Kapadia
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 14
________________ ग्रन्थनाम दान - शील-तप-भावनासंवाद (गू.) रूपकमालाऽवचूर्णिः चार प्रत्येकबुद्धरास (गू. ) चातुर्मासिकव्याख्यानम् कालिकाचार्य कथा श्रावकाराधनाविधिः शीलछत्रीसी (गू.) सन्तोषछत्रीसी (गू.) प्रियमेलकरास (गू.) सामाचारीशतकम् “विशेषशतकम् प्रस्तावना ग्रन्थमानम् रचना संवत् १६६२ ४०० १६६३ १६६५ १ लींबडी भाण्डागारसस्कायां प्रत्यां प्रशस्तिरियम् 29 १६६६ १६६७ १६६९ Jain Education International 19 १६७२ 17 97 "सोलसह वासठि (१६६२ ) समह रे 'सांगा' नगर (?) मक्षारि । पद्मप्रभ सुपसाउ लइ रे एह भण्णट अधिकारे रे ॥ ६ ॥ सोहम सांपि परंपरा रे 'खरतर' गच्छ कुलचंद | युगप्रधान जगि परगडा रे श्रीजिनचन्द्र सूरिंदो रे ॥ ७ ॥ सासु सीस अति दीपतो रे विनयवंत जसवंत । भाचारिज चढती कला रे श्रीजिनसिंह सूरि महंतो रे ॥ ८ ॥ प्रथम श (शिष्य श्री पूजनो रे सकलचन्द तसु सीस । समय सुन्दर वाचक भणिरे संप सदासुं जगीस रे ॥९॥ वान शील तप भाषनो रे सरस रचिउ संवाद । भणतां गुणतां भावसुं रे रिद्धि समृद्धि सुप्रसादो रे ॥ १० ॥" २ इयं समशोधि श्री समय सुन्दर गणिमगुरुश्रीजिनचन्द्रसूरि शिष्य श्रीरत्ननिधानगणिभिः । ३ नीजी भाण्डागारसत्कसप्तपत्रात्मिकायाश्चातुर्मासिक व्याख्यानप्रत्याः प्रान्ते - "श्रीसमय सुन्दरोपाध्यायविरचितचतुर्मासिकव्याख्यानं समाप्तम् ।" ४ वाराणसी स्थयतिश्रीबाल चन्द्रभाण्डागार सरक कालक सूरि कथा प्रतिप्रान्ते उल्लेखो यथा"श्रीमद्विक्रम संवति रसर्तुशृङ्गार (१६६६) सख्यके सहसि । श्री वीरमपुर' नगरे श्रीराउलतेजसीराज्ये ॥ १ ॥ बृहस्वरतरे गच्छे, युगप्रधानसूरयः । जिनचन्द्रा जिनसिंहाश्च, विजयन्ते गणाधिपाः ॥ २ ॥ यः सकलचन्द्रः शिष्यः समयसुन्दरः । कथां कालिकसूरीणां चक्रे बालावबोधिकाम् ॥ ३ ॥" ५ 'मेडता' नगरे रचितमिदम् । ६ श्रीविजयधर्मलक्ष्मीज्ञानभाण्डागारसत्कप्रति प्रान्तेऽयमुलेखः- "श्रीमत् 'खरतर 'गच्छे श्रीमजिनसिंहसूरिगुरुराज्ये । साम्राज्यं कुर्वाणे युगप्रधानाख्यविरुद्धरे ॥ १ ॥ विक्रमसंवति कोचनमुनिदर्शन कुमुदबान्धव ( १६७२ ) प्रमिते । श्री पार्श्व जन्मदिवसे ( पौषकृष्ण दशम्यां ) पुरे भी 'मेडता' नगरे ॥ २ ॥ १३ For Private & Personal Use Only ་ १० www.jainelibrary.org

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