Book Title: Anekarth Ratna Manjushayam
Author(s): Hiralal R Kapadia
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 15
________________ प्रस्तावना रचनासंवत् १६७३ ग्रन्थनाम नेलदवदंतीचोपाइ (गृ.) पुण्यसारचरित्र (गृ.) 'विचारशतकम् वल्कलचीरीचोपाह (गू.) वस्तुपालतेजपालरास (गू.) शत्रुजयरास ( गू.) बारव्रतरास (गू.) १६७४ १६८१ १६८२ १६८५ युगप्रधानपदवी, भोअकब्बरशाहिना । येभ्यो दत्ता महाभाग्याः, श्रीजिनचन्द्रसूरपः ॥३॥ सेषां शिष्यो मुख्यं(ख्यः) स्वहस्तदीक्षश्च सकलचन्द्रगणिः । तच्छिष्यसमयसुन्दरसुपाठकैरकृत शतकमिदम् ॥ ४ ॥ संवत् १७२७ वर्षे श्रावणवदि ३ दिने शनिवारे श्रीगुढामध्ये ॥ पं. कल्याणनिधानमुनीना (नामन्ते). वासिना पं० लब्धिचन्द्रमुनि(ना) लिपीचके।" गाथासहस्यां निरदेशि ग्रन्थोऽयं श्रीसमयसुन्दरगणिभिः । , "सुधरम सामि परंपरा 'चंद' कुल 'वयर' सामि सापि, 'कोटक' गच्छ खरतरउ महारकिया सुभाषि सुभाष जुगपरधान जिनचंद प्रथम शिष्यशिरोमणी, जसु गोत्र 'रीहर' नाम पंडित संकलचंद मसिद षणी तसु शिष्य पभणइ समयसुन्दर उपाध्याय इसी परई, वाचनाचार्य हर्पनन्दन प्रमुष सिध्यमई आदरई। गोत्र 'गलोछा' गहगहह 'मेडता' नयर ममारि, दिन दिन संघ माहि दीपता 'खरतर' गच्छ सिणगार सिणगार धमें तणा धुरंधर देवगुरुरागी घणउ,रायमल्ल पुत्ररत्न अमीपाल (खे)तसी नेतसी भ' राजसी तासु भत्रीज तिहां किण नेतसी भाग्रह करी, चौपइ कीधी समयसुंदर नलवदंती चरित्तरी संवत सोल तिहोत्तरह (१६७३) मास वसंत आणंद, नगर मनोहर 'मेडतह जिहां वासपूज्य जिणंद वासपूज्य तीर्थकर प्रसाद(8) गच्छ 'खरतर' गहगहइ, गच्छराय युगपरधान जिनसंघसूरि सदा जस कहा उवझाय कह समयसुंदरकीय भाग्रह नेतसी, चोपहनलवदंती केरी चतुर माणस पित्त वसा संवत् १७९७ वर्षे कार्तिक शुक्ल १. रविवासरे सयणाप्रामे"। २ चुनीजीभाण्डागारसत्कविचारशतकप्रतिप्रान्ते प्रशस्तिरेवम् "स्वच्छे 'खरतरगच्छे विजयिनि जिनसिंहरिगुरुराजे। वेदमुनिदर्शनेन्दु(१६७४)प्रमितेऽन्दे 'मेडता'नगरे ॥१॥ श्रीजिनचन्द्रमुनीन्द्रास्तच्छिष्यः सकलचन्द्रगणिरासीत्। तच्छिष्यसमयसुन्दरनामानः पाठकप्रवराः॥२॥ शीघ्र स्मृतिकृते स्वस्य, विचारशतकं व्यधुः । पृथक् स्थितविधाराणा-मेवमेकन मीलनात् ॥ ३॥" । “संवत सोलसह न्यासीयह (१६८२) ५ श्रावण वदि सुखकार से. रास भण्यट 'सेव्रुज' तणड ए नगर 'नागोर' मझार से. १९ गिरुयक गच्छ 'खरतर' तणऊ ए श्रीजिणचंदसरीस से., 'प्रथम शिष्य श्रीपूज्यना ए सकलचंद सुसीस से.२० तासु सीस 'जगि परगडा ए समयसुंदर उवझाय से०, ए सस रच्या तिण रुयाउ.ए. सुणतां पाणंद पाय से. " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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