Book Title: Anekarth Ratna Manjushayam
Author(s): Hiralal R Kapadia
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 20
________________ प्रस्तावना इति .... संवत् १८९० वर्षे मिति चैत्रशुदि ११ शुक्रे महोपाध्याय श्री ५ श्रीपुण्यचन्द्रजीगणि । तत्सि (च्छि ) ष्य पुण्यविलासजी गणि । तदंतेवासी वाचकपुण्यशीलगणिलिखिता चतुष्पदिका | 'बाकरोद' ग्राममध्ये ।" किश्च विलोक्यतां 'सुसढचोपड़' प्रान्तिमो भागः-"श्रीजिनचंद सूरीसरू रे सकलचंद तसु सीस समय सुंदर पाठक सदा रे जयवंता जगदीस ७६० पाटोघर तसु परगडा रे कंदवादकुद्दाल हरषनंदन वाचक हठी रे प्रीछइ बाल गोपाल ८६० जयकीरत वाचक ज्या रे सीहां सीह सुसिष्य राजसोम पाठक रिधू रे प्रसिद्ध है तासु प्रसिष्य ९६० ग्यानलाभ गणि गुण निलो रे अंतेवासी अम्ह समयनिधान वाचक सुपीरे तिण कह्यो चोपइ तुम्ह १०६० सुस तणी अति सुंदरु रे मुझ सिष्य नाम मुरारि ते करि देवो तुम्हे रे अरज एह अवधारि ११६० चतुर जोडाई उपइ रे श्रीजिनधर्मसूरीस रिधू तलै त राजमई रे संवत सतरै सैतीस 'अकबराबाद' कीधी अम्हे रे आलमगीर अधीस १३६० ...संवत् १८१८ वर्षे फागुणमासे कृष्णपक्षे पंचमीतिथौ शनिवासरे श्रीदेशणोकमध्ये भ० श्री जिन भक्तिसूरिजी शिष्यवाचनाचार्य श्री माणिक्य सागरजी गणिशिष्यपं ० तत्त्वधर्म लिवीचक्रे 'देणोक 'ग्रामे चतुर्मासीकृता ।" "मुज जनम श्री' साचोर' मांहि, तिहां च्यार मास उच्छांहि; तिहां ढाल ए कीधी एके ज, कहे समय सुंदर धरी हेज" प्राग्वाटीयलीलादेरुपसीनन्दनश्रीसमय सुन्दरगणीनां जन्मस्थलं 'सत्यपुर' मिति ज्ञायते सीतारामचतुष्पदी (ख. ६, ढा. ३ ) गतेन निम्नावतारितोल्लेखेन श्रीसमयसुन्दरगणीनां विशारदतादिदिग्दर्शनम् - १९ १ प्रेक्ष्यतां देवीदासगुम्फितं गीतम् । ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only एतद्गणीनां मुख्यैः शिष्यैः श्रीहर्षनन्दनैः १६७३ तमेऽब्दे प्रणीते मध्याह्वव्याख्यानपद्धतिनामके ग्रन्थे स्वगुरुनिपुणता दिमाश्रित्य किमपि प्रोक्तम् । तच्चैवम्"जिनचन्द्रसूरियुगवरराजानां शिष्य मुख्य गणनायाम् । गणिसकलचन्द्र विबुधाः सद्गुरुभक्ताः सदा आसन् ॥ ११ ॥ १० १५ २० २५ www.jainelibrary.org

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