Book Title: Anekarth Ratna Manjushayam
Author(s): Hiralal R Kapadia
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

Previous | Next

Page 104
________________ श्रीविवेकसागरविरचितः ॥ हरिशब्दार्थ गर्भितः श्रीवीतरागस्तवः ॥ इन्द्रे - भा-श्व-शुक-वा-हि-पवन-स्वर्णा- शुं- लोकान्तैरेभारि --- कपीन्दु पीतं - गरुड - श्री शुक्र-विष्ण्व-र्कजैः । सूत - स्कन्द - शनी-श-वंश-वरुण - प्राणाऽग्नि भीताऽसि तै रर्थैस्त्वां हरिजैः क्रमाज्जिनपते ! त्रिंशन्मितैः स्तौम्यहम् ॥ १ ॥ - शार्दूल ● भज भक्तिविनम्रनरेशहरिं १ भज कर्ममहीरुहभङ्गहरिम् २ | भज सिद्धिपुरीपथपान्धहरिं ३ भज योगिमनः सहकार हरिम् ४ ॥ २ ॥ - * पादाकुलकम् भज वाणिफणिह (क्ष) तवादिहरिं ५ भज भीमभवानिलहा निहरिम् ६ । भज पापरंजनजनाशहरिं ७ भज सौवशरीररुगस्तहरिम् ८ ॥ ३ ॥ भज शोकतटाकतपोऽर्कहरिं ९ भज चिद्विदिताङ्गिसमस्तहरिम् १० ॥ भज दर्पमतङ्गजराजिहरिं ११ भज पारगतं तिमिरौघहरिम् १२ ॥ ४॥ जयन्त्रित हैपी हरिं १३ भज वादिकदम्बकको हरिम् १४ ॥ भज चम्पकसून विशेषहरिं १५ भज मारसरीसृपजग्धिहरिम् १६ ॥ ५ ॥ भज दत्तनमज्जननैकहरिं १७ भज लोकदनुद्भवशास्तिहरिम् १८ ॥ भज तं नरकक्षयकारहरिं १९ भज रूपरमापरिभूतहरिम् २० ॥ ६ ॥ भज केवलकाञ्चनसिद्धिहरिं २१ भज हांसहिमप्रभ शीलहरिम् २२ । भज सौख्यविधातृ तृतीयहरिं २३ भज मोहविपाभ्यवहारहरिम् २४ ॥ ७ ॥ भज जन्मपवित्रितहारिहरिं २५ भज संयमनीरधिवासहरिम् २६ । भज रक्षित सर्वजनौघहरिं २७ भज कर्मसमिद्दहनै कहरिम् २८ ॥ ८ ॥ भज दुस्तरसंसृतिसङ्गहरिं २९ भज नेत्रविकारविनाश हरिम् ३० । भज शारदचन्द्रसमानयशोघनसारसुगन्धितभूवलयम् ॥ ९ ॥ जिनवर ! परमार्हतस्तवस्ते व्यरचि मया गुरुसोमसुन्दरास्य (?) । प्रवितर सुविशालराजराजद्गुणं मम वर्यविवेकसागरं त्वम् ॥ १० ॥ दुई X *** 奴 १ भेकः । २ रविप्रवृत्तिकरः । ३ भवान्तरम् । ४ सूर्यः । ५ पीतवर्णः । ६ स्वर्वैयौ अश्विनीकुमारकौ । ७ पारदः । ८ स्वामिकार्तिकेयः । ९ वागेव फणिनः- सर्पास्तैर्गमिता वादिन एव हरयो-मेका येन । १० अकारान्तोऽपि वर्तते शब्दोऽयम् । ११ इन्द्रियम् । १२ दैत्यः | १३ तृतीयः शनिः सुखकारकोऽस्ति इति रत्नमालायाम् । वृत्तरत्नाकरेऽस्य लक्षणमेवम् - मात्रासमकं नवमालगन्तम्, उपचित्रा नवमे परयुक्ते, अष्टाभ्यो भाद् गावुपचित्रा जान्हावथाम्बुधेर्विश्लोकः, तद्युगलाद् वानवासिका स्यात्, बाणाष्टनवसु यदि लश्चित्रा । यदतीतकृतविविषलक्ष्मयुतैर्मात्रासमा दिपादैः कलितम् अनियतवृत्तपरिमाणसहितं प्रथितं जगत्सु 'पादाकुलकम्' ॥ Jain Education International १० For Private & Personal Use Only १५ २० www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180