Book Title: Anekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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अनेकान्त 60/1-2
6. सूत्रपाहुड 20,21,22 7. सूत्रपाहुड।। 8. वरिससंयदिक्खियाए अज्जाए अज्ज दिक्खिओ साहु।
अभिगमणवंदण णमसणण विणएण सो पुज्जो।। मोक्षपाहुड 12 की टीका में उद्धृत 9. पंच छः सत्त हत्थे सूरी अज्झावगो य साधु य।
परिहरिऊणज्झाओ गवासणेव वदंति ।। भगवती आराधना 195 10. मुनिजनस्य स्त्रियाश्च परस्परं वन्दनापि न युक्ता।
यदि ता. वन्दन्ते तदा मुनिभिर्नमोऽस्त्विति न वक्तव्यं किं तर्हि वक्तव्यं
समाधिकर्मक्षयोऽस्त्विति । मोक्षपाहुड 12 टीका पृ० 313 11. संजमणाणुवकरणे अण्णुवकरणे च जायणे अण्णे।
जोग्गग्गहणादीसु अ इच्छायारो दु कादव्यो।। भगवती आराधना।।131 12. दसणणाणचरित्ते तव विणये णिच्चकालमुवसत्था।
एदेदु वंदणीया जे गुणवादी गुणधराणं ।। दंसपाहुड 23 13. इत्याद्यनेकधानेकैः साधुः साधुगुणैः श्रितः।
नमस्य श्रेयसेऽवश्य ..................... | 1674 पचाध्यायी उत्तरार्द्ध 14. अनगार धर्मामृत 753-5490772 15. धवलः1.1.1.1/52.2 16. यद्यपि चारित्रगुणेनाधिका न भवन्ति तपसा वा तथापि सम्यग्ज्ञानगुणेन
ज्येष्ठत्वात्श्रुतविनयार्थमभ्युत्थेयाः। यदि बहुश्रुताना पार्श्वेज्ञानादिगुणवृद्धयर्थ स्वयचारित्रगुणाधिका अपि वन्दनादि क्रियासु वर्तन्ते तदाति प्रसगदोषो भवति ।।
प्रवचनसार ता० वृ० 263 एव 267 गाथाओं के अन्तर्गत । 17. असजदो ण वदे वच्छविहीणो वि तो ण वंदिज्ज।
दोण्णि वि होंति समाणा एगो वि ण संजदो होदि ।। दसणपाहुड 26 18. भगवती अराधना 1949 19. इतरेषां तु श्रमणाभासानां ता. प्रतिषिद्धा एव। प्रवचनसार ता०वृ०263 20. समाचार अधिकार मूलाचार 21. क) यथा हि यथायोग्यप्रतिपत्तया। तत्र मुनीन “नमोऽस्तु इति आर्यिका वन्दे इति।
श्रावकान् इच्छामि इत्यादि प्रतिपत्तया"। सागार धर्मामृत 6/12 की आशाधरकृत स्वोपश टीका का अंश। (ख) गणहर णिग्गंथहँ पणवेप्पिणु अज्जियाह वदणय करप्पिण।
खुल्लय इच्छायारु करेप्पिणु सावहा णु सावय पुछप्पिणु।। सिरिवालचरिउ पृ० 5 22 पचाध्यायी उत्तरार्द्ध 735
- रीडर संस्कृत विभाग, दि. जैन कॉलिज, बड़ौत।

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