Book Title: Anekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 14
________________ अनेकान्त 60/1-2 आर्यिकाओं को वन्दामि पद से विनय प्रगट की गई है। जैसे जैनाचार्य इन्द्रनन्दि द्वारा भी लिखा गया हैनिर्ग्रन्थानां नमोऽस्तु स्यादार्यिकाणां च वन्दना। श्रावकस्योत्तमस्योच्चरिच्छारोऽभिधीयते ।। 51 ।। -नीतिसार समुच्चय अर्थात निर्ग्रन्थ मुनिराजों को नमस्कार करते समय नमोऽस्तु कहना चाहिए, आर्यिकाओं को वन्दामि कहना चाहिए और उत्तम श्रावकों को इच्छामि या इच्छाकार बोला जाता हैं। इसी प्रकार अन्यत्र भी कहा गया है। अतः पूर्वाचार्यों की परम्परा को समादर देते हुए परवर्ती कथनों और लोकपरम्परा को मानकर मुनियों को नमोऽस्तु, आर्यिकाओं को वन्दामि और उत्तम श्रावक-श्राविका क्षुल्लक ऐलक एवं क्षुल्लिकाओं को इच्छामि व्यवहार करने की सामाजिक व्यवस्था में बाधा नहीं डालकर इस परम्परा को सभी को मानना चाहिए। जिनागम में व्रतों से परिपूर्ण स्त्रियों का भी सम्मान करना आवश्यक है इसलिए उनका लोक व्यवहार के अनुसार सम्मान आदि करना ही चाहिए। लोक प्रसिद्ध पद व्यवहार भी मान्य होना चाहिए क्योंकि परम्परा (रूढ़ि) भी स्वीकार्य होती है। अतः मुनियों को नमोऽतु आर्यिकाओं को वन्दामि और ऐलक क्षुल्लक आदि को इच्छामि/इच्छाकार पदव्यवहार भी प्रचलन में रहे हैं, वह आज भी सामयिक हैं। इन्हीं विनय वाचक पदों से विनय व्यवहार चले यही आवश्यक और योग्य है। सन्दर्भ 1. सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग । तत्त्वार्थसूत्र प्र० सूत्र ।। 2. णग्गो विमोक्खमग्गो सेसा उम्मगया सव्वे।। सूत्रपाहुड 23 ।। 3. स्वयभूस्तोत्र। 4. गृहस्थो मोक्षमार्गस्थो निर्मोहो नैव मोहवान्। अनगारो गृही श्रेयान् निर्मोहो मोहिनो मुने ।।33 । ।रत्नश्रा० 5. द्विविध संग विन शुध उपयोगी मुनि उत्तम निजध्यानी। मध्यम अन्तर आतम है जे देशव्रती अनगारी।। जघन कहें जे अविरतसमदृष्टि तीनो शिवमगचारी।। -छहढाला

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