Book Title: Anekant 1992 Book 45 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 12
________________ १०, वर्ष ४५, कि०१ अनेकान्त नाम वाले पुष्पदन्त दुर्बल श्यामल शरीर वाले, कपल के है कि पुष्पदन्त बुध हरिसेन के पूर्व महाकवि के रूप में समान प्रफुल्लित मुख वाले, स्वाभिमानी और महान् प्रसिद्ध हो चुके थे। डा. हीरालाल ने लिखा है कि महाआत्मविश्वासी, श्रेष्ठ काव्य शक्तिधारी जैनधर्म दर्शन के पुराण की रचना ईसवी मन् ६६५ में समाप्त हो चुकी मर्मज्ञ स्पष्टवादी और उग्र स्वभाव के व्यक्तित्व वाले थे। थो"। इससे स्पष्ट है कि पुष्पदन्त का समय ई. सन् महाकवि पुष्पदन्त ने अपने आश्रयदाता का नाम मान्यखेट ८१६--१७२ के मध्य निर्धारित किया जा सकता है। नगरी के राजा कृष्णराज के महामत्री नन्न थे। डा. नेमिचन्द्र शास्त्री ने इनका समय ईस। सन् की महाकवि पुष्पदन्त के जन्मस्थान के बारे मे विद्वानों १०वी शताब्दी माना है। में मतभेद है। पं० नाथू गम प्रेमी का मत है कि अप- धनपाल-अपभ्र श भाषा मे महाकाव्यों की रचन भ्रंश साहित्य की रचना उत्तरी भारत मे हुई है। पुष्पदन्त करने वालो मे महाकवि धनपाल का नाम आदर के साथ की रचनाए अपभ्र श भाषा मे रची गयी हैं, इससे सिद्ध उल्लिखित हुआ है । "भविस यत्तकहा" नामक महाकाव्य है कि पुष्पदन्त उत्तर से दक्षिण आए होगे। अत: इनका लिकर ये अमर हो गए। महा.वि धनपाल का विस्तृत जन्म उत्तरी भारत मे किसी स्थान पर हुआ होगा। डा० परिचय उपलब्ध नहीं है । इनके महाकाव्य के आधार पर हीरालाल जैन का मत है कि पुष्पदन्त दुष्टो के कारण कहा जा सकता है कि धनपाल का जन्म धक्कड़ वैश्य कुल भ्रमण करते हुए मान्यखेट पहुंचे थे और वही पर उन्होने मे हुआ था। इनके पिता का नाम माएसर (माहेश्वर) अपनी रचनाएँ लिखीं। इससे सिद्ध होता है कि वे मान्य- और माता का नाम धनश्री था। ये दिगम्बर जैन मत खेटा निवासी नहीं थे। दूसरी बात यह है कि इनके के अनुयायी थे। धनपाल ने अपने को सरस्वती पुत्र बचपन के नाम 'खण्ड' से प्रतीत होता है कि वे महाराष्ट्र कहा है। के निवासी थे, क्योंकि यह नाम आजकल महाराष्ट्र मे महाकवि धनपाल के समय का निर्धारण करते हुए बहत प्रचलित है। डा. पी. एल. वैद्य ने पुष्पदन्त को डा. हरमन जगवी, श्री पी. वी. गुणे, डा. देवेन्द्रकुमार रचनाओं में आई हुई लोकोक्तियो और शब्दो के आधार शास्त्री आदि ने अपने dिar ama पर उन्हें उतरी भारत के किसी स्थान का माना है। हीरालाल जैन ने ईसवी सन् १०वी सदी का महाकवि उपर्यस्त विचारों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा माना है। राहल सांकृत्यायन का भी यही मत है"। सकता है कि पूष्पदन्त का जन्म उत्तरी भारत मे ही हुआ फिर भी इनके समय के सम्बन्ध में गम्भीर अन्वेषण एवं था। अनुसंधान को आवश्यकता है। महाकवि पूष्पदन्त के समय के विषय में भी विद्वानो धवल-अपभ्रश भाषा में हरिवश पूराण नामक में मतभेद है। क्योंकि उन्होने अपने जन्मकाल के विषय महाकाव्य के रच यता महाकवि धवल के पिता का नाम मे कुछ भी उल्लेख नही किया है। इसलिए डा० हीरा- सूर माता का नाम केसुल्ल था। इनके महाकाव्य से ज्ञात लाल जैन, पं० नाथराम प्रेमी, डा. पी. एल. वैद्य आदि होता है कि इनके गुरु का नाम अम्बसेन था। ब्राह्मण कुल विद्वानों ने महाकवि की कृतियों में उल्लिखित घटनाओ, मे उत्पन्न हए महाकवि धवल जैन मुनि के कारण जैन ग्रंथ और अथकारो एवं उनके उत्तरवर्ती कवियों की कृति मतानुयायी हो गये थे। मे उल्लिखित पुष्पदन्त के नाम के आधार पर उनका महाकवि ने अपने हरिवंश पुराण को उत्थानिका में समय निर्धारण किया है। महापुराण में ईसवी सन् ८१६ जिन आचार्यों का उल्लेख किया है उससे ज्ञात होता है मे रचे गये (वीरसेन के) धवला और ८३७ मे रचे गये कि वे ईसवी सन् १०-११वी के महाकवि थे"। जयपवला के उल्लेख से सिद्ध होता है कि पुष्पदन्त इनके वीरकवि-अपभ्रंश भाषा में जबसामिचरिउ के बाद हए होंगे"। इसी प्रकार ईसवी सन् ९८७ में लिखी रचयिता, काव्य व्याकरण, तर्क कोश, छन्द शास्त्र द्रव्यानुगयी धर्म परिवखामे इनका उल्लेख हुआ है। इससे सिद्ध योग, चरणानुयोग, करणानुयोग आदि विषयो के ज्ञाता

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