Book Title: Anekant 1992 Book 45 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ अपनश भाषा के प्रमुख जैन साहित्यकार : एक सर्वेक्षण के विषय में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। उत्तरार्ध के महाकवि थे। इनके जन्म स्थान पर राख स्वयम्भू और उनके पुत्र त्रिभूवन के उल्लेख से ज्ञान होता हीरालाल जैन, पं० नाथ र म प्रेमी, डा. भोलाशंकर व्यास है कि महाकवि चतुर्मुख ने दुवई एवं ध्रकों से युक्त एव डा० भावाणी ने गवेषणात्मक विचार व्यक्त किये हैं। पढडिया छन्द का आविष्कार किया था। इसके अतिरिक्त इससे पता चलता है कि व दाक्षणात्य थे। ऐसा प्रतीत होता है कि चतुर्मुख ने व्यास शैली में महा- ४. विभवन स्वयम्भ-स्वयम्भ के पुत्र एवं आगम भारत एव पञ्चमी चरिउ नामक ग्रंथ की रचना की थी। व्याकरण के ज्ञाता त्रिभवन स्वयभ ने भी अपनश भाषा लेकिन किसी कारण से आज वे ग्रंथ उपलब्ध नहीं है। में अपने पिता के अधुरे कार्य को पूरा किया है। पउमचंकि स्वयम्भू ने चतुर्मुख का उल्लेख किया है, इसलिए चरिउ ती प्रशस्ति गाथा से ज्ञात होता है कि उन्होंने यह कहा जा सकता है कि चतुर्मुख स्वयम्भू के पहिले के परम चरिउ को पूरा किया था"। ० हीरालाल जैन है। स्वयम्भ का समय ई. सन् ६७६.६७७ के आसपास का नत के विभवन Fan rame सिर का माना जाता है। इसलिए चतुर्मुख को ईस्वी सन् ६०० चरिउ के अपूर्ण अश को पूरा किया है। लेकिन पउमका कवि माना जा सकता है । चरिउ को प्रशस्ति गाणा के आधार पर डा० भायाणी ने २. द्रोण-द्रोण कवि का भी उल्लेख त्रिभुवन माना है कि त्रिभान वियभू ने पउपचरिउ रिठ्ठनेमि स्वयम्भू ने अपने रिट्ठनेमि चरिउ मे 'क्या गया है। चरिउ और श्री पञ्चमी चरिउ को पूरा किया है। पं. इसके अलावा पुष्पदन्त, धवल, धनपाल, आदि ने भी नाथूगम प्रेमी का भी यही मन है कि त्रिभुवन स्वयंभु ने सम्मानपूर्वक स्मरण करते हुए उनकी लोकप्रियता को अपने पिता की उक्त अपूर्ण कृतियो को पूर्ण किया है। सचिन किया है। इससे सिद्ध होता है कि द्रोण नामक इसका समय ईमवी सन् वी शताब्दी माना है। कवि अवश्य ही हुए है। द्रोण ने भी अपभ्रश भाषा मे ५. पुष्पदन्त-पुष्पदन्त अपम्रश भाषा के दूसरे महाभारत की कथा लिखी थी। उनकी यह कृति अनुप- ऐसे महाकवि हैं, जिन्होंने अपभ्रंश भाषा मे महापुराण, लब्ध है। ये भी स्वयम्भू के पूर्ववर्ती एव चतुर्मुख के उत्तर- जसहर चरिणायकूमार चरिउ लिखकर अपनश साहित्य वर्ती थे। को समृद्ध किया है। णायकुमार चरित की प्रशस्ति से ३. स्वयम्भू-अपभ्रंश भाषा के सर्वप्रथम महाकवि ज्ञात होता है कि उनके पिता का नाम केशव और माता है। मारुतदेव और पानी के पुत्र स्वयंभू' को इनके नाना पाटवी या fRAYA और में उनरवर्ती कवियों ने महाकवि कविराज चक्रवती जैसी गुरु से उपदेश पार जैन हो गये थे। बाद में उनके माता उपाधियों से विभूषित किया है। इनके परिवार में इनको पिता ने जैन सन्यास विधि से मरण किया था। पुष्पदन्त दो पत्नियां-आदित्यात्वा और सामि व्वा एवं त्रिभुवन काश्यप गोत्रीय ब्राह्मण कुन मे उत्पन्न हुए थे। इससे नामक पुत्र था। धनजय के आश्रय में रहने वाले और पता चलता है कि पुष्पदन्त को जैनधर्म की शिक्षा अपने कालीदास के समकक्ष अपघ्रश के महाकवि स्वयंभू का माता-पिता से मिनी होगी। जसहर चरिउ में वे कहते हैं पारिवारिक जीवन सुखी एवं सम्पन्न था"पउम चरिउ, क "पापहारिणी मुग्धा नामक ब्राह्मणी के उदर से रिट्टनेमि चरित, स्वयम्भू छन्द, शोद्धचरिउ, पञ्चमी उत्पन्न श्यामल वर्ण, काश्यप गोत्रो के शव के पुत्र, जिनेन्द्रचरिउ और स्वयम्भू व्याकरण के रचयिता महाकवि चरणो के भक्त, धर्म में आसक्त, व्रतों से संयुक्त, उत्तम स्वयम्भू के जन्म-काल एवं उनके जन्म-स्थान के विषय में सात्विक स्वभावी अथवा श्रेष्ठ काव्य शक्तिधारी, शकाविद्वानों में मतभेद है। उनकी कृतियों में जिन पूर्ववर्ती रहित, अभिमान चिह्न, प्रफुल । मुख, खण्ड कवि ने यह कवियों का उल्लेख हुपा है और उनके उत्तरवर्ती कवियों यशोधर कथा की रचना की और उसके द्वारा विद्वानों की में स्वयम्भू का उल्लेख किया है उसके आधार पर कहा सभा का मनोरजन किया। जा सकता है कि स्वयम्भू ईसवी सन् ८वीं शताब्दी के उपर्युक्त कथन से सिद्ध होता है कि खा या खण"

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 144