Book Title: Anekant 1992 Book 45 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 9
________________ कर्नाटक में जनधर्म कर्नाटक में संगीत की ध्वनि देने वाले स्तम्भ भी हैं। नक्कासी में भी यहां के मन्दिर आगे हैं। बेलगांव की कमल बमदि अहिंसा के स्मारकों की भूमि का कमल आबू के मन्दिरों के कमल से होड़ करना चाहता अत्यन्त प्राचीनकाल से ही कर्नाटक जैनधर्म का प्रमुख है तो जिननाथपुरम के मन्दिर काम उत्कीर्णन मन मोह केन्द्र रहा है। इस प्रदेश का जो इतिहास श्रुन केवली भद्र- लेता है। मानस्तम्भों की भी यहां विशेष छवि है । कारबाह और चन्द्रगुप्त मौर्य के पाले बों, विभिन्न मन्दिरो, कल मे एक ही शिना से निमित ६० फुट ऊँचा मानस्तम्भ शिनालेखों आदि से प्राप्त हुआ है उससे इस कथन की पुष्टि है तो मडबिद्री में मात्र ४० इच ऊंचा मानस्तम्भ देखा होती है। यहां इतने मन्दिर और तीर्थ कालान्तर मे बने जा सकता है। या विकमित हुए कि इप भूमि को अहिंसा के स्मारको की मतिकला का तो कर्नाटक मानो संग्रहालय ही है। भूमि कहना अनुचित नही होगा । यहा मडबिद्री मे पकी मिट्टी (clay) की मूर्तियां है तो कर्नाटक विभिन्न शैली के मन्दिरो की निर्माणशाला पाषाण से निर्मित विशालकाय गोम्मट (बाहुबली) मतियां या विकासशाला रहा है । ईसा की प्रारम्भिक सदी में यहां है। श्रवणबेलगोल की ५७ फुट ऊँची मूति तो अब विश्वकाष्ठ के जैनमन्दिर निर्मित होते थे। एक कदम्बनरेश ने विरूपात हो चुकी है। कार कल की ४२ फुट ऊँची बाहुहलासी (पलाशिका) में ईसा की पाचवी सदी मे लकड़ी बली मति खड़ी करने का विवरण ही रोमाचक है । वेणूर का एक जैनमन्दिर बनवाया था। हुमचा के शिलालेखों और धर्मस्थल तथा गोम्मटगिरि की मूर्तियों का अपना में उल्लेख है कि वहां पाषाण मन्दिर बनवाया गया। यह हो आकर्षण है। बादामी का गुफा मन्दिर की बाहुबली तथ्य यह भी सूचित करता है कि पहले कुछ मन्दिर मति तो जटामो से युक्त है और श्रवणबेलगोल की मूति पाषाण के नही भी होत थे। काष्ठमन्दिरो के अतिरिक्त से भी प्राचीन है। पार्श्वनाथ की मृति के विभिन्न अकन कर्नाटक में गुफा मन्दिर भी हैं जो पहाड़ी की चट्टान को देखने के लायक हैं। हमचा मे कमठ के उपसर्ग सहित, काट-काटकर बनाए गए। इस प्रकार के मन्दिर ऐहोन तो कही-कहीं सहस्र फण वाली ये मूर्तियां मोहक हैं। और वादामी मे है । कालान्तर मे पाषाण की काफी चौड़ी चतुर्मुखी पाषाण-मूर्तियो का एक अलग ही आकर्षण है। मोटी शिलाओ से मन्दिर बनाए जाने लगे। ऐसा एक यक्ष यक्षिणी की भी सुन्दर मूर्तिया है। मन्दिर ऐहोल मे ६३४ ई. मे बना जो इसलिए भी प्रसिद्ध पचधातु, अष्टधातु, सोने-चाँदी और रत्नो की मतियां है कि प्राचीन मन्दिरो मे वही एक ऐसा मन्दिर है जिसकी भी अनेक स्थानों मे है। तिथि हमे ज्ञात है। हम्पी (विजयनगर) का गानिगित्ति ताडपत्रो पर लिखे गए हजारो ग्रन्थ इस प्रदेश में है। मन्दिर विशाल शिलाखण्डो से निर्मित मन्दिरो का एक प्राचीन धवल, जयधवल और महाधवल ग्रन्थ भी इसी सुन्दर उदाहरण है। तीन मोटी और ऊंची शिनाओ से प्रदेश से हमे प्राप्त हुए। उसकी दीवार छत तक पहुंच गई है । शायद उसमे जोड़ने जैन और अजैन राजाओ की धार्मिक सहिष्णुता के के लिए मसाले का भी प्रयोग नहीं किया गया है। मंदिरो लेख भी यहाँ प्राप्त होते है। जैसे हम्पी के शासक की के शिखरों का जहा तक प्रश्न है, कर्नाटक मे उत्तर भार- राजाज्ञा । विजय नगर साम्राज्य के अवशेष यही तीय और दक्षिण भारतीय दोनों ही प्रकार के शिखरो के हनुमान की फिकिधा भी यही है। मन्दिर विद्यमान हैं। मूडबिद्री के मन्दिर तो नेपाल और कुन्दकुन्दाचार्य ने जिस पर्वत से विदेह-गमन किया तिब्बत की निर्माण शैली से सयोगवश या सम्पर्कवश था वह कुन्दाद्रि भी यही है। साम्यता रखते हैं । सुन्दर नकासीयुक्त एक हजार स्तम्भो कर्नाटक मे कई हजार शिलालेख बताए जाते हैं। तक के मन्दिर (माबद्री) कर्नाटक मे है। और उनमे से केवल श्रवणबेलगोल मे ही ६०० के लगभग शिलालेख है। कुछ की पालिश अभी भी अच्छी हालत में है। कुछ मदिरों (शेष पृ.८ पर)

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