Book Title: Anekant 1988 Book 41 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 46
________________ श्री कुन्दकुन्द का विदेह गमन - श्री रतनलाल कटारिया, केकड़ी ला इस वक्त कुन्दकुन्द द्विसहस्राब्दि महोत्सव का प्रारम्भ यह कथन भी युक्तियुक्त नहीं, क्योंकि ले जाने वाले है यह हमारे लिए अत्यन्त सौभाग्य की बात है । शिला- क्या अपने कन्धों पर बिठाकर ले गए ? आकाश मार्ग में लेखों ( सौ वर्ष) टीकाओं (८ सौ वर्ष) कथा ग्रन्थों कैसे ले गए ? महाव्रती साधु न तो किसी को बैठा सकते (५-६ सौ वर्ष) में आ० कुन्द कुन्द के चारण ऋद्धि होने हैं और न कोई महामुनि किसी के कन्धे पर बैठ कर कहीं और विदेह गगन के उल्लेख पाये जाते हैं । ये युक्ति और जा सकता है तब कैसे ले गए ? और फिर ये दोनों आगम से कहां तक ठीक हैं आज उन पर विचार किया चारषि पहुंचाने को भी आए गए क्या ? १-"तिलोय जाता है ताकि वास्तविकता का ज्ञान हो सके :- पण त्ती" अधिकार ४ (भाग २ सम्पादिका विशुद्धमति जी) चारण ऋद्धिधारी मुनि तो एकल नहीं होते ज्यादा में बताया है कितर युगल ही होते हैं जैसा कि सारे कथा ग्रन्थों में जहाँ अत्तो चारण मुगिगणो, देवा विज्जाहरा य णायान्ति । भी चारण मुनियों के उल्लेख है प्रायः दो मुनिराज ही (इस पचम काल मे यहा चारण ऋद्धिधारी मुनि, युगल रूप से विहार करते बताए गये है (देखो-मुनि देव और विद्याधर नहीं आते। सुव्रत काव्य में देशभूषण कुलभूषण (इनके जन्म, दीक्षा, २-'परमात्म प्रकाश' पृ० २५६ (अ० २ दोहा १३६ कैवल्य, निर्धारण साथ-साथ हुए है) महावीर काल मे सजय को ब्रह्मदेव कृत ठीका) में लिखा है : विजय) क्योकि एकल बिहारी होना मुति के लिए मूला- देवागम परीहीणे, कालेऽतिशय वजिते । चार और भगवती आराधना में महान दोषास्पद बताया केवलोत्पत्ति होनेतु, हल चक्रधरोज्झिते ।। है। अगर कुन्द कुन्द के चारण थी तो दूसरे साथी मुनि (इस पचम काल में यहा देवताओं का आगमन नही कौन थे ? चारण ऋद्धिधारी तो सदा चारण ऋद्धिधारी होता, कोई अतिशय नहीं होता किसी को केवलज्ञान नही मुनियों के साथ ही रहते है अन्य के साथ नहीं जबकि होता, बलदेव चक्री आदि शलाका पुरुष नहीं होते)। आचार्य कुन्द कुन्द के संघ मे अन्य किसी भी मुनि के 'किसा भा मुनि के ३.-"पुण्याश्रव कथाकोश" पृष्ठ २२४ में लिखा है : . चारण ऋद्धि होने की बात नहीं बताई गई है। अतः आगच्छतो विमानस्य व्याघुटन अदय प्रभत्यत्र सुर चारकन्दकन्दाचार्य को चारण ऋद्धि बताना युक्तियुक्त नही, णादीनां आगमनाभावं व ते ॥३॥ (आते हुए विमान का असंगत है। लोटना यह बताता है कि-आज से यहां देव और चारण अभी डा० हुकमचन्द जी भारिल्ल कृत "आ० कुन्द ऋषियों का आगमन नही होगा। (चन्द्रगुप्त के सोलह कन्द और उनके पंच परमागम' ग्रंथ जयपूर से प्रकाशित स्वप्नों का फल)। हुआ है उससे एक वर्ष पूर्व उनकी सुपुत्री का "आ० कुन्द ४-भद्र बाहु चरित (भ० रत्ननंदि कृत १७ वीं कन्दः एक अध्ययन" प्रकाशित हुआ है दोनों में "ज्ञान शती) परिच्छेद २ में लिखा है: प्रबोध" की कथानुसार लिखा है : व्याघुट्यमानं गीर्वाण विमान वीक्षितं ततः । "मीमंधर स्वामी की समवशरण सभा में कुन्द कुन्द कालेऽस्मिन्नागमिष्यन्ति, सुर खेचर चारणाः ॥३६॥ के पूर्व भव के दो मित्र चारण ऋद्धिधारी मुनिराजा उप- (इस विषम काल में देव, विद्याधर और चारण मुनि स्थित थे वे आ० कुन्द कुन्द को विदेह ले गए।" नही आयेंगे, यह स्वप्न में जो सम्राट् चन्द्र गुप्त ने लौटता

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