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२८. वर्ष ४१, कि०३
पंक्ति
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अनेकान्त जयधवला पु० ७ का अंश शुद्धिपत्र अशुद्ध अयोग्य
योग्य कर्मपरकाणुओं
कर्मपरमाणुओं उससे आगे अर्थात् पहले जो एक उससे आगे, अर्थात् जिनकी एक समय अधिक समय अधिक आबाधा से हीन आबाधा से हीन कर्म-स्थिति व्यतीत हुई है कर्मस्थिति और इस स्थिति के जो ऐसे इस निरुद्ध स्थिति के जो कर्मपरमाण कर्म परमाणु कहे है उनसे आगे कहे हैं उनसे आगे आवाहा । एदिस्से
आबाहा, एदिस्से [देखो :-ऐसा ही सूत्र पृ.
२७० पर द्वितीय चूर्णि सूत्र] विवक्षित स्थिति में एक समय कम एक समय कम आवली से न्यून आबाधा आवली से न्यून आबाधाप्रमाण प्रमाण इस विवक्षित स्थिति के विकल्प अवस्तुविकल्प होते हैं। इस प्रकार समाप्त हुए। इस स्थिति के विकल्प समाप्त हुए । विशेषार्थ-विवक्षित स्थिति दो विशेषार्थ-यह उपसहार सूत्र है। विवक्षित समय कम
स्थिति एक समय कम आवली से न्यून आबाधा की अंतिम स्थिति है, अत: इसमे, जिन कर्मपरमाणुओ की स्थिति उदय से लेकर एक
आवली से न्यून आबाधा काल तक शेष रही आवाधा प्रमाण अवस्तुविकल्प है वे कर्म परमाणु नही पाए जाते। इसी से बताए हैं।
इस विवक्षित स्थिति में एक आवली से न्यून आवाधा-प्रमाण अवस्तु विकल्प बतलाये है। जिनकी स्थिति एक समय कम आवली से न्यून आबाधा प्रमाण या इससे अधिक स्थिति शेष रही है वे सब परमाणु इस निरुद्ध स्थिति में पाए जाते है । इस प्रकार अवस्तु विकल्पो व वस्तुविकल्पो का कथन हो जाने पर इस निरुद्ध स्थिति सम्बन्धी समस्त विकरूपो का कथन समाप्त हो जाता है।
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२६-३२
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३०५ ३०५
तीन समय अधिक
दो समय कम आबाधा से आगे की
आबाधा से लेकर आगे की धवल पु० १ का अंश शुद्धि पत्र असख्यातवे भाग प्रमाण
असंख्यातवें भाग आयाम वाले संख्यात आवली प्रमाण
संख्यात आवली आयाम वाले न चैते सर्वेषु सम्भवन्ति,
न चैते सर्वेषु सम्भवन्ति, दशनवपूर्वधराणामपि
क्षपक[नोट-प्रथम संस्करणस्थपाठं द्रष्ट्वा, सर्वसंस्करणेष्वनु
बाव च दृष्ट्वा इवं चरमं संशोधनं कृतम् ।]
१२-१३ १०
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