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वीर सेवा मन्दिर का मासिक
अनेकान्त
(पत्र-प्रवर्तक : प्राचार्य जुगल किशोर मुख्तार 'युगवीर') वर्ष ४१: कि०३
जुलाई-सितम्बर १९८८
इस अंक में
विषय! १. गुरु-स्तुति २. निन्यानवे के चक्कर से बचिए
-स्व० डा. ज्योतिप्रसाद जैन ३. आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थों में निश्चय-व्यवहार
__का समन्वय-डॉ. सुदर्शनलाल जैन ४. एक नया मिथ्यात्व-'अकिंचित्कर'-संपादक ५. मिथ्यात्व ही द्रव्य कमबंध का मूल कारण है
-श्री पं० फूलचन्द्र जी सि० शास्त्री ६. मिथ्यात्व का बदला रूप-अकिचित्कर
-धी पं० मुन्नालाल प्रभाकर ७. 'अकिंचित्कर' पुस्तक आगम विरुद्ध है
-श्री पधचन्द्र शास्त्री, दिल्ली ८. क्या मिथ्यात्व बन्ध के प्रति अकिचित्कर है
-श्री बाबूलाल जैन कलकत्ते वाले ६. मिथ्यात्व हो अनंत संसार का बंधक है
-स्व. पं० श्री कैलाशचन्द्र सि० शास्त्री १०. मिथ्यात्व अकिचित्कर नहीं-डा. सुदर्शनलाल जैन ११. दशवी शताब्दी के अपभ्रश काव्यों मे दार्शनिक
समीक्षा-श्री जिनेन्द्रकुमार जैन उदयपुर १२, धवला पु०६ व पु० १ तथा जयधवला पु०७ का
शुद्धिपत्र-श्री प० जवाहरलाल शास्त्री १३, जरा सोचिए : -सम्पादक १४. मिथ्यात्व अकिचित्कर नही है-रतनलाल कटारिया, क. ३
प्रकाशक:
वीर सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२