Book Title: Anekant 1988 Book 41 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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बसवीं शताब्दी के अपभ्रंश काव्यों में दार्शनिक समीक्षा
२६
संपा० एवं अनु० प्रफुल्लकुमार मोदी, प्रकाशक प्राकृत २८. पसुसग्गुगच्छन्ति । दीखन्ति सकयस्थ तो अप्पयं तत्थ । ग्रंथ परिषद्, वाराणसी १९४४.
होमेवि मते हिं महुं पुत्तकतेहिं । महापु. ६६॥३२॥२१-२३ ७. ओ धम्मतरु राय, सोहोइ दुहुभेय-६॥२०॥३. २६. णायकुमार रउ ६।१०।३. ३०. वही ६।१०३.५.
करकण्डचरिउ (मुनिकन कामरकृत)-सपा० व अनु० ३१. चन्द्रप्रभचरित (वीरनन्दिकृत) २२५४१५३.
डा. हीरालाल जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, १९४४. ३२. जसहरचरिउ ३।२१।१२-१३ ३३. वही ३१२१११. ८. करकण्डचरिउ-६।२२।२-३
३४. चपयवासु विलग्ग उ तेल्नहो, एमगधु जिह पिण्ण फुल्लहो ६. (क) पासणाहरित ३।६-११
ति देहहो जीवहो भिण्णत्तणुं दिट्ठउ किं फिर चवहि(ख) करकण्डचरिउ-६।२२-२३
जिड़त्तण ॥
-जसहरचरित २।२१३१७ १०. (क) महापुराण (पुष्पदंतकृत) सधि ७, कड़वक १४, ३५ ......इंतृड दीसइ जीउ पहतरि । जसहरच० २।२१।१७
सपादक डा० पी. एल. वैद्य तथा अनुवादक डा. देवेन्द्र- ३६. जसह र चरिउ ३।२२।१-२. कुमार जैग, भारतीय ज्ञानपीठ । ६७६.
३७. प्रबोधचन्द्रोदय (कृष्णमिश्रकृत) रूपक के द्वितीय अक (ख) जसहरचरिउ ३।१७. (ग) क रकण्ड चरिउ ६।२१।६ में दष्टव्य । ११. 'गुणपर्यायवद्' द्रव्यम्' तत्वार्थसूत्र(उमास्नातिकृत) ५॥३७ ३८. महापुराण २०१७ १२. (1) महापुराण ३।२।७. (ख) णायकुमार बरिउ (पुष्प- ३६. (क) णायकुमारचरिउ ११॥ -२.
दन्त चरिउ) १.११६, सपा. व अनु० डा. हीर: लाल (ख) चवलयरु पवणु थिरजउ रित्ति, असरुवह कहि जैन भारतीय ज्ञानपीठ १९६२.
नेलावजुत्ति ॥ -महापुराण २०१८1८ १३. णायकुमारचरिउ ६।१५
४०. णयकुमारचरिउ ६।११।४-६. १४. 'मोक्खमग्गु सुन्दर मुणसु तिणि वि दणाणचरित्ताइ ४१. महापुराण २०१८।१०-११. ४२. वही २३।१६. णायकुमारचरिउ ६।१३।१४.
४३. यशस्तिलकचम्पू (दीपिक) उत्तरार्ध पृ० २७४. १५. (क) पासणाहचरिउ ६।१५ (ख)मह पुराण धा७, ७७१३ ४४. मलिन्द प्रश्न. ४५. ईश्वर प्रत्यभिज्ञाविमशिनी-१२।८ १६. (क) महापुराण ६।६, (ख) कर फण्ड वरिउ शर?
४६. ..... जगुणिछिउ खणबिद्धवसणु । १७. जगिवे उ मूल धम्मधिवहो । जसहरचरि उ २।१५।८
-णाय कुमार चरिउ, ५२ कि केणवि जयम्भिण कयाउ रियाउ भणन्ति णिया। सणि ख िAum टोद जद मेm - जसहरचारउ ३।२६१
छमासं वयण।
-जसहचरिउ, ३॥२६॥३ १६. जमहरचरिउ ३।२६।२
४८. महापुराण-२०॥१६८-१० ४६. वही-२०१२०१५ २०. वेउ पमाणु ण होउ जएविणु जीवेणसह कहिलन्भह। विणुसरेणकहिं णवकमलु विण धेणुयए गयणु कि युभइ ।। ५०. रेणकहिं णवकमल विण धणय गया ५०. वासणाइ जइणाण पयासह तो
वासण खणि किण उ णासइ । -गायकुमारचरिउ हा८1८-६
कि सा पचह खधहं भिण्णी जीव २१. पसुहम्मइ ५लु जिम्मइ सगहोमोक्खहो गम्मइ । ---जसहरचरिउ २ १५२१०
सिद्धि एमइ पडिवण्णी॥ २२. जइ एण जि कम्मे ता कि धम्मे पारधिउ सेविज्जह।
-जसहरचरिउ, ३।२६।४-५ -महापुराण ७।२१२ ५१. खणि-खणि अण्णु जीउ जइ जाय उ. २३. मिगमारउ अहिंसा कि घोसइ,
तो वाहिरे गउ किह घरु आयउ। जो मासे अप्पाणउ पोसइ। णायकुमारचरितार अण्णे यवियउ अण्णु ण याण इ, २४. यशस्तिलकचम्पू-आश्वासचतुर्थ ।
सुण्णु बि वाइ काई वक्खाण इं॥ २५. जसहरचरिउ २।६।१४. २६. वही ३।११।१०. ५२. णायकुमारचरिउ ६५२८-६ २७. महापुराण ७।८।१०-१३.
५३. सर्वदर्णन सग्रह (माधवाचार्यकृत) पृ० ६३-६४,

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