Book Title: Anekant 1988 Book 41 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 51
________________ मध्य-प्रदेश का जैनकेन्द्र सिहोनिया डॉ० कस्तूरचन्द्र 'सुमन' जैन विद्या संस्थान, महावीर जी मूलपाठ राजा था। इसने ६५६ ईसवी में ग्वालियर के निकट संवत् १०१३ माधवसुतेन महिन्द्रचन्द्रकेनकभा (खो) सिहोनियों में विपुल द्रव्य व्यय करके एक जैन मन्दिर दिना। बनवाया था। भूगर्भ से प्राप्त प्रतिमाओं से यह स्पष्ट है प्रथम प्रतिमा लेख: कि यहाँ का मन्दिर ध्वस्त हो गया और प्रतिमाएं कालापाठ-टिप्पणी न्तर में भूगर्भ में आवृत हो गई। पं० विजयमूर्ति ने खोदिता' पद को 'प्रतिष्ठिता' का अभिलेख का महत्व अपभ्रंश बताया है।' दुर्जनपुर से प्राप्त गुप्तकालीन एक प्रस्तुत लेख एक ही पक्ति का होने पर भी बहुत प्रतिमा-लेख में 'कारिता' पद इस अर्थ में व्यवहृत हुआ महत्त्वपूर्ण है। राजा माधव और उनके पुत्र महेन्द्र का है। अतः प्रस्तुत लेख में 'कारिता' पद रहा प्रतीत होता है। नाम इसी लेख से ज्ञात हुआ है। अभिलेखों में कारिता या खोदिता पद प्रतिमा-निर्माण प्राप्तिस्थल-परिचय के अर्थ में आये हैं। इन पदों के पूर्व प्रतिमाओं के नाम सिहोनिया-ग्वालियर से २४ मील उत्तर की ओर बताये गये हैं । दुर्जनपुर प्रतिमा-लेख मे 'कारिता' पद के तथा कोतवाल से १४ मील उत्तर-पूर्व में आसन नदी के पूर्व प्रतिमा का नाम चन्द्रप्रभ बताया गया है। अतः उत्तरी तट पर स्थित है। यह नगर प्राचीन काल में प्रस्तत लेख में भी 'खोदिता' पद के पहले 'चन्द्रप्रभ' नाम समृद्ध था। कहा जाता है कि यह बारह कोस विस्तृत उत्कीर्ण रहा प्रतीत होता है। मैदान में बसा था। इसके चार फाटक थे। यहां से एक इस लेख मे दो नाम आये हैं माधव ओर महिन्द्र चन्द्र, कोस दूर बिलोनी ग्राम में दो खम्भे, पश्चिम में एक कोस इनमें पिता का नाम माधव और पुत्र का नाम महिन्द्र- दूर पोरीपुरा ग्राम में एक द्वार अंश, पूर्व में दो कोस दूर चन्द्र बताये जाने से महिन्द्र के साथ सयोजित 'चन्द्र' पद पुरावस ग्राम में तथा दक्षिण में बाढा ग्राम में दरबाजों के चन्द्रप्रभ तीथंकर का प्रतीक ज्ञात होता है। अवशेष इसके प्रतीक हैं। भावार्थ डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ने अपने एक लेख में बताया सवत् १०१३ में माधव के पुत्र महेन्द्र ने चन्द्रप्रम कि यहां प्राचीनकाल में विभिन्न सम्प्रदायों के मन्दिरों में तीर्थकर की प्रतिमा प्रतिष्ठित कराई। ग्यारह जैन मन्दिर थे, जिनका निर्माण जैसवाल जैनों ने प्रतिमा-परिचय कराया था। मुरैना के जैसवाल जैन श्रावकों की समति प्रस्तुत लेख जिस प्रतिमा की आसन पर उत्कीर्ण को देखकर लगता है कि वे मूलतः सिहोनिया या उसके निकट बसे ग्रामो के निवासी रहे होंगे। रहा है, वह प्रतिमा सम्प्रति यहाँ के मन्दिर में नहीं है। कनिधम को विक्रम संवत् १०१३, १०३४ और जो मुख्य तीन प्रतिमाएं हैं, उनकी आसनें भूगर्भ में होने १४६७ के ये तीन प्रतिमा लेख प्राप्त हुए थे। उन्हें वहाँ से यदि यह लेख उनमें किसी प्रतिमा की आसन पर पांचवीं-छठी शताब्दी का एक लेख ऐसा भी मिला था जो उत्कीर्ण है, तो यह नहीं कहा जा सकता कि वह लेख किस तीर्थकर-प्रतिमा की आसन पर है। चौदह पंक्ति में उत्कीर्ण था। यह शिलाखण्ड उन्होंने लंदन व्याख्या भेज दिया बताया है। इस उल्लेख से नगर की धार्मिक माधव-यह वहाँ का आरम्भिक शासक ज्ञात होता समृद्धि का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। है। इसके पुत्र का नाम महेन्द्र था। नगर के नामकरण का इतिहास महेन्द्र-यह सिहोनिया के महाराज माधव का पुत्र जनश्रुति है कि ग्वालियर के संस्थापक सूरजसेन के या।डॉ० ज्यतिप्रसाद ने बताया है कि यह अर्ध स्वतन्त्र पूर्वजों ने आज से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व इस नगर को

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