Book Title: Anekant 1988 Book 41 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 52
________________ १८, वर्ष ४१, कि० २. अनेकान्त रह सके। बसाया था। कहा जाता है कि राजा सूरजसेन को कुष्ट सुन्दर हस्त-कोशल का परिचायक है। रोग हो गया था जो यहाँ अम्बिका देवी के पार्श्व में स्थित प्रतिमा के हाथों के नीचे चवरधारी सौधर्म और तालाब में स्नान करने से नष्ट हुआ था। इस घटना से वे ईशान इन्द्रों को खड्गासन मुद्रा में अंकित बताया गया बहुत प्रभावित हुए थे। उन्होंने अपना नाम शुद्धनपाल है। पीछे भामण्डल भी अंकित है। तथा नगर का नाम सुद्धनपुर या सुधियानपुर रखा था', यह प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में इनके कत्थई वर्ण के जो कालान्तर में सुहानिया या 'सिहोनिया' हो गया प्रतीत पत्थर से निर्मित है । चरण से नीचे का अंश भूगर्भ मे है। होता है। इसकी अवगाहना लगभग तेरह फुट है।। इस नगर पर ईसवी ११६५ से ११७५ के मध्य इस प्रतिमा की दाई पोर सत्रहवें तीर्थंकर कुन्थुनाथ कनौज के राजा अजयचन्द्र द्वारा आक्रमण किया गया था। की प्रतिमा है। इसकी आमन पर मध्य में अर्ध चन्द्राकृति इस समय नगर का शासन एक राव ठाकुर के आधीन था, के बीच चिह्न स्वरूप बकरे की आकृति अंकित है। चिह्न जो ग्वालियर के अन्तर्गत था। युद्ध में राव ठाकुर परा- के नीचे धर्मचक्र तथा धर्मचक्र के दोनों ओर आमने सामने जित हुआ। कन्नौज के शासक भी अधिक दिन तक न मुख किए एक-एक बैठा हुआ सिंह दर्शाया गया है । आसन पर कोई लेख उत्कीर्ण नहीं है। द्वितीय प्रतिमा-लेख मूल नायक शान्तिनाथ-प्रतिमा की बाई ओर अठामूलपाठ रहवें तीर्थकर अरहनाथ की प्रतिमा है। इस प्रतिमा के संवत् १०३४ श्री वजदाम महाराजाधिराज वइसाख हाथों के नीचे चंवरवाही इन्द्र, आमन के मध्य में एक अर्ध वदि......" चन्द्राकृति के बीच मच्छ और इसके नीचे आमने सामने पाठ-टिप्पणी एक-एक सिंह अकित है। इस प्रतिमा की बाई ओर पना. 4. विजयमूर्ति ने जरनल एसियाटिक सोसायटी ऑफ सन मद्रा मे छोटी-छोटी कुछ प्रतिमाओ का अंकन भी है। बंगाल जिल्द ३१ का सन्दर्भ देते हुए 'संवत्' को 'सम्वतः' शान्तिनाय-प्रतिमा के समान कुथुनाथ और अरहतथा 'पाचमी' को 'पाचमि' बताया है। लेख का अंतिम नाथ की प्रतिमाएं भी कायोत्सर्ग मुद्रा में कत्थई रंग के अंश अपूर्ण है। इस अंश में प्रतिमा का नाम तथा 'कारिता' बलए पाषाण से निर्मित है। गुच्छों के रूप में दर्शाई पद उत्कीर्ण रहा प्रतीत होता है। गई केश गशि, उन्नत नासिका, नासाग्र-दृष्टि, मन्दस्मित भावार्थ मुख, भरे हुए कपोल, अोठ, चिबुक और कणं दोनों प्रति. संवत् १०३४ के बैशाग्व वदि पंचमी (तिथि) मे महा माओ में विन्यास की दृष्टि से समान है। अभिलेख तीनों राजाधिराज श्री वज्रदाम ने (प्रतिष्ठा कराई)। प्रतिमाओं पर नही है। अभिलेख-परिचय इन प्रतिमाओं से सम्बन्धित शान्ति, कुन्थु और अरह यह अभिलेख कनिंघम को एक जैन प्रतिमा पर तीनो कामदेव, चक्रवर्ती और हस्तिनापुर के निवासी तथा अंकित मिला था। पं० परमानन्द शास्त्री ने इसे सिहों- तीर्थकर थे। इन तीनों प्रतिमाओ मे शान्तिनाथ-प्रतिमा निया के शान्तिनाथ तीर्थकर की प्रतिमा के पृष्ठ भाग में अन्य प्रतिमाओ की अपेक्षा अधिक ऊँची है। सम्भवतः उत्कीर्ण बताया है।" वर्तमान में प्रतिमा के पीछे एक यही कारण है जो कि यह मन्दिर 'शान्तिनाथ-मन्दिर' के .. दीवाल खड़ी कर दी गई है जिससे लेख लुप्त हो गया है। नाम से विश्रुत हुआ। प्रस्तुत मन्दिर में विराजमान ये प्रतिमा-परिचय तीनो प्रतिमाएँ एक टीले को खोदकर भूगर्भ से निकाली मन्दिर में तीन मनोज्ञ प्रतिमाएँ है। इनमे शान्ति- गई हैं। नाथ तीर्थंकर की मूलनायक प्रतिमा है। इस प्रतिमा की व्याख्या केश-राशि, नासाग्र-दृष्टि, मन्दस्मित-मुख, कपोल, चिबुक, वनवाम-प्रस्तुत लेख में इन्हें 'महाराजाधिराज' कर्ण और नाभि का अंकन मूर्तिकार के शिल्ल ज्ञान और कहा गया है। 'महाराजाधिराज' इस पद से यह स्पष्ट है

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