Book Title: Anekant 1988 Book 41 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 50
________________ १६, वर्ष ४१, कि०२ अनेकान्त उक्त पद में कवि ने केशोराय पाटन के स्थान पर स्तुति में लिखा गया है । यद्यपि ब्रह्मदेव के पूर्व भी जैन पाटण नाम का ही उल्लेख किया है जो उसके प्राचीन ___कवियों ने चांदन गांव के महावीर के सम्बन्ध में पद लिखे नाम की ओर संकेत है। केशोराय पाटन स्थित भगवान हैं लेकिन प्रस्तुत पद विस्तृत है जो २० लघु अन्तरों में मुनि सुव्रत नाथ का मन्दिर राजस्थान के प्राचीनतम पूरा होता है । इसमें गाय चरने, गाय के स्तनों से दूध मन्दिरों में से है जिसकी अतिशय क्षेत्र के रूप में सर्वत्र वर्षा होने, गाय के मालिक द्वारा उक्त घटना देख कर प्रसिद्धि है। नगर मे जाकर वृत्तांत कहना, चौबीसवां तीर्थकर की प्रतिमा होने का शब्द होना; पाँचों द्वारा एकत्रित होकर मो गजा पर जमीन खोद कर मूर्ति का प्रकट कराना. देश के यात्रियों कवि का दूसरा ऐतिहासिक पद राजस्थान के अलवर का दर्शनार्थ आने लगना, महावीर भगवान को शहर में जिले में राजोरगढ़ स्थित नो गजा नाम से प्रसिद्ध भगवान विराजमान करने का विचार करके बैलगाढ़ी मे विराजमान पार्श्वनाथ की मूर्ति के स्तवन में लिखा गया है । पद मे करना, बैल पाड़ी का नहीं चल सकना, स्वप्न आना, चैत्र नो गजा बिम्ब के सम्बन्ध में लिखा गया है कि वह गेहूं शुक्ला पूर्णिमा का मेला भरना; वही पर भगवान का वरणी है जो राजपुर अथवा राजोरगढ जो वन मे पर्वत मन्दिर बनवाना, दर्शनार्थियो का लगातार आते रहना पर गढ़ बना हुआ है उसी में वह मूर्ति विराजमान है। आदि का वर्णन किया गया है । पद मे मन्दिर निर्माता घने जंगल के कारण मन्दिर तक पहुंचना कठिन लगता का नाम नहीं दिया गया है । किस ग्राम के पंच आए थे है। वहाँ कितने ही जैन मन्दिर हैं । अजबगढ़ होकर इसका भी उल्लेख नही किया गया है। फिर भी पद राजोरगढ़ जाना पड़ता है। स्वय अजबगढ़ भी प्राचीन महत्त्वपूर्ण है तथा अपने समय में काफी लोकप्रिय रहा है नगर है। नो गजा की यात्रा की जाती थी ऐसा पद में इसलिए राजस्थान के शास्त्र भण्डारों में संग्रहीत कितने वणित हैं । डॉ कैलाशचद जैन के मतानुसार राजोरगढ ८वीं शताब्दी से लेकर १२वी शताब्दी का नगर है जहा ही गुटको में मिलता है। पूरा पद निम्न प्रकार हैपहिले बड़ा गूजर राजपूतो का राज्य था। ढाल-प्रसडौ बधावो म्हारै पाइयो दूसरे पद मे पाँच अन्तरे हैं । पाठको के पठनार्थ पूरा पूजो श्री महावीर जी पद ही यहां दिया जा रहा है जीवा चांदण गांव नदी, राग रेखता जीवा अतिशय अधिक अपार जी पू० १ सरसा उत्री बम्ही प्रतिमा राजोरगढ़ मैं विराजे है। जीवा गाय घणी वन मे चर, नो गजा बिम्ब छाजे है, गेहूं बरण कहा जे है ।१।। जीवा नदी दरडा माहि जी।पूजो० २। देस है जोध ए नामां, नगर है राजपुर धामा। जीवा एक गऊ सिरदार हो, निकरि परबल बना गढ़ है, मारिग अति कठिन चाले है ।। जीवा दरडो पूजे आय जी पूजो० ३। जन मन्दर घणा दरसै भव्य जीव आरिण पर है। जीवा दूध धार बरखा कर, पूजे आई द्रव्ध लै चित सै, करम सव भाग ऐ डर से ।३ जीवा ढोकै मस्तक नाय जीपूजो० ४॥ अजब गढ़ थे सबै ध्यावे, प्रभ की जतरा पावै। जीवा गाय घणी इम देखिके, गुरा जुत संग यावे, मंगल पूजा रचा है।४। जीवा कहो नगर मैं आय जी पूजो० ५। प्रभू जी जी अरज ऐ सुणिये, करम का फद टाल्योगे। जीवा सबद देव का तब हुआ; देवा ब्रह्म वीनती करि है, तुम्हरी भगति मो धोये ॥ अठ चौबीसमा छ जिन राय जी पूजो०६। तीसरा पद पूजो श्री महावीर जी जीवा पंच सबै भेला हुआ, तीसरा पद चान्दन गांव के भगवान महावीर की जीवा खोदन लागा जाणो जीपूजो० ७॥

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