Book Title: Anekant 1988 Book 41 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 47
________________ श्री कुन्दकुन्द का विवेह गमन ही लिखी ६-प्रमाकि -" हुआ देव विमान देखा है उसका फल है ।) की बात नहीं लिखी है। क्योकि यह सब युक्तयुक्त्यागम ५-भद्र बाहु चरित (किशन सिंह जी पाटणी कृत विरुद्ध है जैसाकि ऊपर दिए ६-प्रमाणादि से सिद्ध है। १७८३ सं०) मेरे ख्याल से कुछ ऐसा हो सकता है कि-"स्वप्न में जात अपूठा देव विमान, इस स्वप्ना को येह बखान । कुन्दकुन्द को सीमंधर प्रभु के दर्शन हुए हों और उनसे वे सुर खेचर चारण मुनि जोय, पंचमकाल न आवे कोय ॥ विबोध को प्राप्त हुए हो।" धीरे-धीरे परम्परागति से ६. प्रति बोध चिन्तामणि (काष्ठासंघी श्री भषण यही कल्पना और जनश्रुति विदेह गमन चारण ऋद्धि के विजय सूरि १६३६ सं०) में लिखा है :-पंचम काल मे रूप मे प्रस्फुटित हुई हो। उत्पन्न पुरुष विदेह मे नही जा सकता। तत्वार्थ सूत्र के कर्ता उमा स्वामी और सर्वार्थसिद्धि ___तब कुन्द कुन्द का सदेह विदेह गमन कैसे सगत हो टीकाकार पूज्यपाद दोनों के भी, शिलालेखादि में चारण सकता है। तटस्थ होकर विद्वानों को विचार करना ऋद्धि और बिदेह गमन बनाए हैं। जैसे लोक में England चाहिए। कुन्दकुन्द को दो हजार वर्ष हो गए १२ सौ Returned-विदेश जाकर आए हुए को विशेष महत्व वर्ष तक तो किसी ने उनके विदेह गमन और चारण ऋद्धि दिया जाता है शायद उसी शैली मे इन आचार्यों के साथ को बात कही की नहीं उनके टीकाकार आ० अमृतचद्र ने विदेह-गमन की बात जोड़ी गई है। किन्तु गलत बातों से भी इस विषय का कही कोई संकेत तक नहीं नहीं दिया। किसी का गौरव और महत्ता नही बढती । गरिमा तो न स्वय कुन्दकन्द ने कही कोई उल्लेख किया है। एका- सदा गुणों और प्रामाणिकता की ही होती है। मान्य तो एक आठ सौ वर्षों के शिला लेखों से ऐसी बातें बिना वे ही है अन्ध श्रद्धादि नहीं । अपनो की झठी प्रशंसा आधार के उत्कोर्ण होना आश्चर्यजनक है। उत्कीर्ण करने करना और दूसरो की गलत निन्दा करना दोनो मिथ्या वालों की प्रामाणिकता का भी कोई नाम पता नही। है। भले ही विनय और कषायादि सही सोचने की हमारी आज तक किसी विद्वान ने इस पर गम्भीरता से विशेष शक्ति को कुण्ठित कर दें परन्तुविचार ही नहीं किया । भारिल्ल साहिब तो महान सचाई छिप नही सकती बनावट के उसूलों से । ताकिक प्रतिभाशाली मनीषी विद्वान है वे कैसे गतानु- खुशबू आ नही सकती कभी कागज के फूलों से ॥ गतिक बन गये ? आश्चर्य है। "मूलाचार" प्रस्तावना पृष्ठ १० मे श्री जिनदास __ कुन्दकुन्द प्राभूत संग्रह (सन् १९६० पण्डित कैलाश पार्श्वनाथ जी फड़कुले लिखते है-भद्रबाहु चरित में चन्द जी शास्त्रीकृत) की विशाल प्रस्तावना मे (जिसका स्वप्नफल के रूप मे जो पचमकाल मे चारण ऋद्धि आदि अनुसरण जयपुर के उक्त प्रकाशनो में थोड़ा बहुत है) निषेध किया है, श्री कुन्दकुन्द के विषय में उसका समा. कुन्दकुन्द के विदेह गमन और चारण ऋद्धि पर विस्तृत धान यो समझना चाहिए कि-"वह सामान्य कथन है। विचार करते हुए अन्त में लिखा है-"तथापि इन्हें अभी पचम काल में ऋद्धि प्राप्ति अत्यन्त दुर्लभ है। पंचमकाल ऐतिहासिक तथ्य के रूप मे स्वीकार नहीं किया जा के प्रारम्भ मे ऋद्धि का अभाव नहीं है परन्तु आगे उसका सकता, उनके लिए अभी और भी अनुसन्धान की आव अभाव है ऐसा समझना चाहिए। यह कथन प्रायिक व श्यकता है।" इसी से प्रेरित होकर वर्षों से मैं, श्रद्धातिरेक ___ अपवाद रूप है। इस सम्बन्ध मे हमारा कोई आग्रह से कुन्दकुन्द के साथ जुड़ी ऐसी अनेक घटनाओं का नही है।" युक्त्यागम पूर्वक अध्ययन कर रहा हूं उसी का परिणाम यह और आगे के लेख है । दर्शनसार गाथा ४३ मे सिर्फ समीक्षा यह लिखा है कि-"सीमंधर स्वामी के दिव्य ज्ञान द्वारा महापुराण पर्व ४१ श्लोक ६१ से ८० में भरत चक्री कन्दकन्द विवोध नहीं देते तो श्रमण सुमार्ग को कैसे को आये सोलह स्वप्नो का फल ऋषभ प्रभ ने यह बताया जानते ?" वहां कहीं भी चारण ऋद्धि और विदेह गमन कि

Loading...

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142