Book Title: Anekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04 Author(s): Padmachandra Shastri Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 9
________________ राम का वन गमन : स्वयंभू और तुलसो जिह रविकिरण हि समिण पहावइ, ण गयघट-गिन्दूर-बिहमिय ।। तिह मइ होते भरहु ण भावइ । मूर मम-रुहिटा लि चच्चिय । तें कज्जे वणवासे बसखउ ॥" णिमियरिव्व आणंदु पणच्चिय ।। "तायहो तणउ सज्च पालेवउ । गह्यि राज पुणु ग्यणि पराइय। दाहिणदेसे करेविणु थत्ति, जगु गिलेइ ण सुत्न महाडय ॥ २३/8' तुम्हह पासे एइ सोमित ॥' २३/6 सध्या हो गई वह लाल दिवाई दी मानो मिंदर से हे मा धीरज धारण कगे, क्यो रोती हो? आखे लाल, गजघटा हो, मानो सूर्य के माम और रक्तधारा से पोछो, अपने को शोक मे मत डालो। जिस प्रकार सर्य की अलकृत हो। वह निशाचरी की तरह आनद से नाच उटी, किरणों के मामने चन्द्रमा नही चमकता, उसी तरह मेरे सध्या चली गई, फिर गत्रि आ पहची जमे वह सोते हुए रहते हुए प्रजा को भरत अच्छा नहीं लगता। इस कारण विश्व को निगन जाना चाहती है। मै वनवास करना चाहता हूँ। मै पिता के सत्य का पालन राम अयोध्या में चल कर पास में एक जिन-मन्दिर करूँगा, दक्षिण देश में निवास कर ! लक्ष्मण तुम्हारे पाम में ठहरने है । रात्रि में मिथुन द्वन्द्व देखते हुए--राम आगे आएगा। बहते है। दूगरे दिन सबेरे जव लोगो को मालूम होता है यह कह कर राम समस्त परिजनो मे पूछ कर चन कि राम वनवाग के लिए नर गाए हे, तो मैन्य और व दिए । उगवे जाने ही सीता देवी राजभवन से निकली। पीछे लगते ।। तब तक राम गभीर नदी के किनारे पहर कवि स्वयभू की कल्पनाए है -- जाते है। मेना को वापस करते हुए वे-सीता देवी को "ण हिमवतहा गग महाण इ । हाथ पर बैठा कर नदी पार कर जाते है। ण छदहो णिग्गय गायत्ती ।। राम लक्ष्मण और मीता मे सूनी अयोध्या नर-नारियो ण सद्दहो णीसग्यि विहनी। को अच्छी नहीं लगती। अयोध्या के राज-परिवार में सबसे णाइ कित्ति सप्पुरुप-विमुक्की । अधिक दुखी व्यक्ति है.-भरत (पउमरिउ के अनुसार जाइ रभ णियणाणहो चुक्की।" २३/६ भरत राग के वन गमन समय अयोध्या में ही थे) अपने भवन से जानकी इस तरह निकली, जैसे वनधाम की बात सुन कर वह मूछिन हो जाते है ? होश में वाम हिमालय से गगा निकली हो, जमे छद से गायत्री निकली आने पर, वह सबसे पहले कोगल्या के पास जाते है, और हो. मानो शब्द से विभक्ति निकली हा, जस सज्जन से मुक्त कहते है कि गा तुम व्यर्थ क्या रानी हा, मैं राम को ढढ उसकी कीर्ति हो जैसे अप्सरा रभा अपने स्थान से चूक कर लाता है। भरत अयोध्या से निकलता है कई दिनों गई हो! तक भटकने के बाद, एक लतागृह मे भगत राम के दर्शन सीता माताओ से पूछ कर राम के साथ हो ली। राम करते है। भग्न उनमे लौटने का अरोध करता है इसी के वन गमन की बात सुन कर लक्ष्मण विद्रोह कर देता है। बीच कैकेयी वहाँ आ जानी है। भरत राम से प्रस्ताव वह राम से कहता है कि मैं अभी भगत को पकडता हूँ करता है कि तुम मे ही अयोध्या का राज करा जैसे इन्द्र और आपको असामान्य राज्य देता हूँ।" राम उसे समझाते सग्लोन में करता है। है-ऐसा राज्य करने से क्या लाभ जिसमे पिता के सत्य कंकेयी के मामने राम पूरी दृढ़ता से अपना कथन का नाश होता हो, मैं सोलह वर्ष वनवास के लिए जाऊंगा। दडराते हैदोनो के सवाद के बीच सूर्य डूबता है, और साझ आनी ण दिण्णु सच्चु ताए तिबार, है ; कवि उसके दृश्य पट पर मानवी अनुभूतियों की त मइ वि दिण्णु तुम्ह समबार । भयावहता के चित्र अकित करता है एउ वत्रणु मणेप्पिणु सुह समिद्ध, णाइ सझ आरत्त पदोसिय । सइ हत्थे भरह पटु बद्धता ।।Page Navigation
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