Book Title: Anekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 8
________________ राम का वन गमन : स्वयंभू और तुलसी 0 डा० देवेन्द्रकुमार जैन . राम के वन गमन की भूमिका तव शुरू होती है, जब दशरथ ने राम और लक्ष्मण को बुलाकर कहा--तुम यदि बुढापे के कारण दशरथ के मन मे राजपाट राम को मौपने मेरे वेटे हो नो छर सिंहासन ओर धरती भरत को दे दो, का विचार आता है। स्वयभू के पउमचरिउ मे दशरथ को हालाकि मैं जानता हूँ कि भग्त भव्य और त्यागी है। बुढापे की अनुमति उस समय होती है जब प्रतिहार अपने 'चरिउ' के अनुमार भरत इस समय अयोध्या में ही थे। बुढापे का वर्णन करता हआ, गधोदक समय पर न पहचाने उन्हें यह बताया जाता है कि उन्हे राज्य का प्रमुख बनाया की अपनी लाचारी का उल्लेख करता है। -- गया है तो वे आपे से बाहर हो उठते है । वह कैकेयी और हे देव मेरे दिन चले गए, यौवन ढल चका है। जग, दशरथ को भला बुरा कहते है। बूढे पिता दशरथ ने उन्है पहले की आयु को सफेद करती हुई चली आ रही है. और यह आदेश दिया कि दुनिया के इतिहास में तीन बाते अमती की तरह मेरे सिर से आ लगी है। गति नष्ट हो लिखी जा--भरत को राज्य, राम को वनवास और मझे चुकी है। हडियो के जोड बिखर गए है कान सुनते नही प्रव्रज्या। राम भी भगत से यही अनुरोध करते है ! आंखें देखती नहीं। गिर कापता है। मह में वाणी आखिर दोनो के आगे भरत को झकना पडा। गम तब उस लडखडानी है। दान जा चुके है । देह की कीति फीकी पड़ राजपट्ट को बाँध कर लक्ष्मण और सीता देवी के साथ वन गई है। रक्त गल गया है। केवल चमडी बची है, मैमा के लिए कूच कर गए। दशरथ शोक में मग्न है कि मैने ही हूं जैमे मेग दूसरा जन्म हो। अब मेरे पैरो में पहले राम को वनवास क्या दिया ? क्या मैने ऐगा कर प्राकृतिक जैसा पहाडी नदी का वेग नहीं है। मैं कैमे गधोदक मव मत्य का ही पालन किया है। यह प्रकृति अपने प्राकृत मत्य दूर पहुंचाता। पर टिकी हुई है। क्योकि-'सच्चु महतउ सव्वहो पासिउ।' "गय दियहा जोव्वणु ल्हमि उ देव, सबकी तुलना मे सत्य महान् है। राम पैदल माँ कौशल्या पढमाउसु जट धवलति आय । के पास जाते है। उन्हें इस तरह आते देख वह हैरान है, पुणु अमड इव सीस वलग्ग जाय ॥ हताश वह कारण पृछती है, उत्तर मिलता है-मैने भग्त गइ नुट्टिय विडिय सधिवध । को माग राज्य मर्पित कर दिया ? वह यह नहीं बतातेण सुणति फण्ण लोयण विरध ॥ क्यों और कैसे? जो सौप दिया उसके कारणो को गिनाने मिफ कंपइ मुहे पक्खलइ वाय । मे लाभ भी क्या था ? कौशल्या फूट-फूट कर रोती हुई गय दत सरीर हो णट्ठ छाय। कहती हैपग्गिलिउ रुहिर विउ गवर चम्म ॥ "हा हा काई वुनु पइ हल हर, महु एत्थु जे हुउ ण णवर जम्म । दस रह वम दीव जग सुंदर । गिरिणइ-पवाह ण वहति पाय, पड विणु को चप्रेराइ, गधोवउ पावउ केम राय ॥" २२/२ पइ विणु को किंदुएण रमेराइ ।।" सुन कर दशरथ को लगता है कि एक दिन ऐसी हा राम हा राम (हलधर) तुमने यह क्या किया? हालन मेरी भी होगी। मैं राम को गजपाट देकर अपना दशरथ कुल दीपक और विश्वसुंदर तुम्हारे विना कौन तप साधूगा । अण्णु तउ कगम । राम को राज्य मिलने हय गज पर बैठेगा, तुम्हारे बिना कौन गेद से खेलेगा? पर कैकेयी जल उठती है वह सीधे अपनी अलकृत वेषभूषा राम माता को समझाते है.---- में दरबार में जाकर राजा से कहती है--यह वह समय है धीग्यि होहि माए कि रोवहि, कि जब आप मेरे बेटे को राज्य का अनुपालक बनाएँ। तुहि लोयण अप्पाणु म मोयहि ।

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