Book Title: Anekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 6
________________ ब्रह्म जिनदास सम्बन्धी विशेष ज्ञातव्य श्री अगरचन्द नाहटा दिगम्बर, संप्रदाय के मरुगुर्जर और हिन्दी भाषा के कार हुए है उन्ही की तरह ब्रह्म जिनदास ने, संस्कृत और जैन कवियो मे १९वी शताब्दी के ब्रह्मजिनदास रास- लोक-भाषा मे बहुत-सी रचनाए की है। राजस्थान और शिरोमणि एव महाकवि माने जाते है। उनके सम्बन्ध में गुजरात के मिलेजुले बागड प्रदेश में उनका विचरण हुआ डा० प्रेमचन्द रावका ने डॉ नरेन्द्र भानावन के निर्देशन मे है। अत ५० जी राजस्थानी-गुजराती दोनो भाषाओ के शोध प्रबन्ध लिखा है जो अभी-अभी श्री महावीर ग्रन्थ कवि माने जा सकते है। पर मेरी राय में ये हिन्दी के कवि अकादमी, जयपुर मे डा० कस्तूरचद जी कामलीवाल के नहीं है, क्योकि हिन्दी भाषा से राजस्थानी एव गुजराती प्रयत्न से प्रकाशित हुआ है। डा० प्रेमचन्द रावका ने अलग व स्वतर भाषाए हैं। ब्रह्म जिनदास को महाकवि अपनी ओर से काफी श्रम करके इस शोध प्रबन्ध को कहा गया है, क्योकि इनकी ३ रचनाए--(१) आदिनाथ तैयार किया है। एव श्री महावीर अकादमी ने जो २० राम (२) रामराम (३) हरिवंश पुराण राम, इन तीनो भागों मे १९वी शताब्दी से २०वी शताब्दी तक के कवियों का ग्रन्थ परिमाण काफी बड़ा है पर ये तीनो रचनाएँ सम्बन्धी जानकारी उनके रचनाओ के प्रकाशन की योजना महाकाव्य की कोटि मे नही आती। ये कथा या चरित्रबनायी है, उसके अन्तर्गत 'महाकवि ब्रह्म जिनदाम व्यक्तित्व काव्य है पर काव्य शास्त्र में जो महाकाव्य के लक्षण एवं कृतित्व' के नाम से डा० प्रेमचन्द रावका का प्रस्तुत । बतलाये है, वैमी इन तीनों रचनाओं का वियष बहत शोध प्रबन्ध प्रकाशित किया है। उममे २८० पृष्ठ नो व्यापक एव वडा है। मूल पुराण या चरित्र ग्रन्थ जिनके उनके शोध प्रबन्ध के है। उसके बाद पृष्ठ २८१ से ४१० आधार से इनकी रचना हुयी है, वे बड़े परिमाण वाले है (१३० पृष्ठों में) ब्रह्म जिनदास की कई रचनाएँ मूलरूप मे इसी से इनका परिमाण बढ जाना स्वाभाविक ही है। तथा कई आशिक रूप में प्रकाशित की गई है। आधारभूत ब्रह्म जिनदास को 'रास शिरोमणि इसलिए कहा गया ग्रन्थो की सूची मे ११४ ग्रन्थों एवत्रिकाओ की नामावलि है कि इन्होने रास सज्ञक रचनाए अधिक संख्या में रची दी गई है। उसके बाद नामानुक्रमणिका एव शुद्धिपत्र है। है। पर वास्तव मे ये कथा ग्रन्थ ही है। ७० रचनाओं मे से ४० रचनाएं ही 'रास' सज्ञक हैं और ७० रचनाओ मे प्रारम्भ में प्राथमिक वक्तृव्य, डा. नरेन्द्र भानावत का से ३३ रचनाएँ तो बहुत छोटी-छोटी है जिनका परिमाण प्राक्कथन और डा० रावका की प्रस्तावना और विषयानुक्रम १०० पद्यों से भी नीचे का है। कुछ रचनाएँ तो ५-७-१५है। प्रस्तुत ग्रन्थ की १ प्रति मुझे सम्मत्यर्थ डा० कासलीवाल २० गाथाओ की ही है। ऐसी रचनाओ का तो केवल ने भिजवायी है। अत. सक्षिप्त में अपने विचार, सुझाव एव संशोधन इस लेख में प्रकाशित कर रहा हू । आशा है इससे सख्या को बढाने की दृष्टि से ही भले ही महत्व हो, पर कुछ नयी जानकारी भी प्रकाश में आयगी। काव्य की दृष्टि से खास महत्व नही है। समग्न ग्रन्थ परिमाण भी ३० हजार ग्रन्थाग्रन्थ ८३२ अक्षरी अनुपम __ 'ब्रह्म जिनदास' का जन्म सकलकीर्ति रास के अनुसार क्षेत्र का है जो इतनी लम्बी आयु को देखते हुए अधिक नहीं पाटण में हुआ था। क्योकि भट्टारक सकलकोत्ति के कहा जा सकता। ये छोटे भाई और गुरु थे। सकलकीत्ति भी अच्छे साहित्य- ब्रह्म जिनदास और उनके गुरु भट्टारक सकल' कोत्ति १. सकलकोति एव उपलकीर्ति का भी यथा ज्ञातविवरण देना चाहिये था। मकलकीति का जब जन्म सं० १४४३ दिया हुआ है तो सं०१४३७ या २३ मान्य नही हो सकता ।

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