Book Title: Anekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04 Author(s): Padmachandra Shastri Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 5
________________ धर्मस्थल में भ० बाहुबली एव प्रयास से स्थान के मुख्य आराध्य के रूप में मजुनाथ उत्तुग प्रस्तर प्रतिमा का निर्माणारम्भ किया जो १६३७ में शिव की स्थापना हुई, तथा शनै शनै अन्य देवी-देवताओ पूर्ण हुआ। तदनन्तर उसे कार्कल से धर्मस्थल स्थानांतरित के आयतन स्थापित हए, और १६वी शनी मे उडुप के किया गया जो एक अति दुस्तर एव व्ययसाध्य कार्य था। मोदेमठाधीश्वर वादिर राज स्वामी ने इस क्षेत्र का दुर्योग से रत्नवर्म जी हेग्गड़े का स्वर्गवास हो गया, किन्तु नामकरण 'धर्मस्थल' कर दिया। थी बर्मण्ण हेग्गड़े के उनके योग्य पुत्र एव उत्तराधिकारी, धर्मस्थल के वर्तमान वशज मन्ततिक्रम से इग पुण्यक्षेत्र के धर्माधिकारी होते रहे, धर्माधिकारी श्री वीरेन्द्र हेग्गडे ने पिता के अधूरे छोड़े जिनकी .... कीगवी पीढी चल ही है। कार्य को भरपूर लगन के साथ पूरा किया। गत ४ फरवरी प्राय सभी जानिया, धर्मो एव सम्प्रदायों के भक्तजन ५९८२ को विशाल पैमाने पर धर्मस्थल के उक्त भ० बडी संख्या में इस क्षेत्र की यात्रा करते है जिसके कारण बाहुबली का प्रतिष्ठापना एवं प्रथम महामस्तकाभिषेक उसकी आय भी प्रभत है। राज्य का सरक्षण एवं प्रश्रय महोत्सव सम्पन्न हुआ है। भी सदैव प्राप्त रहा। हंग्गटे धर्माधिकारियों ने इस क्षेत्र वर्तमान कर्मभमि के आदियुगीन महामानव भ० के माथ स्वय को आत्ममान किए रखा है, और उसकी वाहवली के विशालकाय उत्तुग विग्रह प्रतिष्ठापित करने ममम्त व्यवस्था, विविध धर्मोत्सवो के आयोजन नपा की जिन परम्परा का एक महसू वर्ष पूर्व मत्रीश्वर मार्वजनिक हित एव जनकल्याणकारी अनेक प्रवृत्तियों को चामुण्डाय ने श्रवणबेलगोल में ॐ नम. किया था, उसकी कार्यान्वित किया है। उनकी गर्पिन एकनिष्ठ माधना महस्राब्दि का ममुपयुक्त समापन धर्माधिकारी श्री वीरेन्द्र एव लगन के फनग्वम्ग म्वय उनका तो गौरवपूर्ण एव हेगडे ने टम उ तुग प्रतिमा की धर्मस्थल के बाहुबली प्रतिष्ठित स्थान बना ही. क्षेत्र की भी मर्वतोमुखी उन्नति विहार में प्रतिष्ठापना द्वारा किया है, जिसके लिए वह होती आई है। 'बसन्त महल' नामक अनिभव्य सभागार माधुवाद के पात्र है। भ० बाहुबली की विशालकाय की अनेक उत्तम कलाकृतियाँ स्व० गजमलय हेग्गड़े द्वारा मूर्तियो मे धर्मस्थल की इस प्रतिमा का छठा स्थान है, निर्मित एवं निर्मापित है। वर्तमान शती के प्रारम्भिक किन्तु आकार की दृष्टि में तीसरा है --केवल श्रवणबेलगोल दशको मे गजा चन्दया हेग्गरे मन्नानक्रम मे १८वे या १६वे (५७) फुट और कार्कल (४२) फुट की मूर्तियाँ ही धर्मस्थल धर्माधिकारी थे। वह बढे प्रतिष्ठित एव गन्यमान मज्जन की इस मूर्ति से अधिक विशाल है, शेग समस्त दक्षिण एव थे उनके उत्तराधिकारी श्री रन्न वर्म हैग्गने को धर्मस्थल के उनर भारतीय बाहुबली मूर्तियाँ आकार में उमसे छोटी है। नवनिर्माण का प्रमुख श्रेय है। अपनी धर्मपत्नी श्रीमती लाचार्य श्री विद्यानन्द जी महाराज के आशीर्वाद ताम्मा जी की प्रेरणा से उन्होने धर्मस्थल में भगवान एय मानिध्य, श्रवणबेलगोला के भट्टारक श्री चासकीर्ति वाहवाली के विशाल विग्रह की स्थापना का सकल्प किया स्वामी जी की अध्यक्षता और साहू श्रेयाम प्रमाद जी तथा और उसके कार्यान्वयन में वह मनोयोग में जुट गए। मंठ लालनन्द्र हीराचद दोपी आदि के सक्रिय सहयोग से मन् १९६७ ई० में कार्कल के णिली श्रेष्ठ रेंजाल गोपाल धर्मस्थल के दम महोत्सव ने आशातीत सफलता प्राप्त घेणे की देखरेख में लगभग एक मी कारीगरी ने ३६ फुट की है। ---ज्योति निकुज, चार बाग, लखनऊ अभिनन्दन दिनांक ६ फरवरी १९८२ को लखनऊ में इतिहास मनीषी डा० ज्योतिप्रसाद जैन विद्यावारिधि को सप्ततिपूति के उपलक्ष्य में अनेक मान्य विद्वान तथा इष्टमित्रों ने डा० सा० का अभिनन्दन किया तथा डा० सा० के कार्यों को सराहा । उपयोगी विचारगोष्ठी हुई तथा 'ज्योतिनिकुंज' में 'पुरातत्व के माध्यम से इतिहास शिक्षा' प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। डा० सा० को धर्म और समाज के प्रति अनगिनत सेवाएँ हैं। 'अनेकान्त पत्रिका' के माध्यम से भी डा० सा० समाज को काफी देते रहते है। इस पुनीत अभिनन्दन के लिए वीर सेवा मन्दिर की ओर से डा० सा० के शत-शत अभिनंदन ! 00Page Navigation
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