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अमूर्त चिन्तन
रथ है और आत्मा रथिक है। शरीर घोड़ा है और आत्मा घुड़सवार है। क्या समुद्र में तैरने वाला नाविक कभी अपनी नौका की उपेक्षा कर सकता है ? ऐसा वह कभी नहीं कर सकता। समुद्र की तेज धारा में बहा जा रहा है, अथाह जल है और पार होने का एकमात्र साधन है नौका। क्या ऐसा मूर्ख व्यक्ति मिलेगा जो समुद्र में उतरकर भी नौका की उपेक्षा करे ? कभी नहीं कर पायेगा। वह नौका की पूरी रक्षा करेगा। उसे कुछ भी आंच नहीं आने
देगा।
___ एक प्रश्न यह है कि जो व्यक्ति शरीर और आत्मा को एक मानता है, अभिन्न मानता है वह भी उसे संभालकर रखता है, उसका संरक्षण करता है और जो व्यक्ति शरीर और आत्मा को भिन्न मानता है, अलग-अलग मानता है, वह भी शरीर को संभालकर रखता है। फिर दोनों में अन्तर क्या है ? दोनों में बहुत बड़ा अन्तर है। इसको हम समझें। नाविक नौका को संभालकर रखता है किन्तु उससे चिपक कर नहीं रहता। वह स्पष्ट जानता है कि जब तक तट प्राप्त नहीं हो जाता, तब तक उसके लिए नौका नौका है, वह ग्रहण करने योग्य है। जब तट प्राप्त हो जाता है तब नौका उसके लिए व्यर्थ है। जो शरीर और आत्मा को भिन्न नहीं मानता, वह तट आने पर भी नौका से चिपटा रहता है। वह यह सोचता है कि नौका ने मुझे पार लगाया है, अब इसे मैं क्यों छोडूं। जो नौका है वह मैं हूं और जो मैं हूं वह नौका है। मैं नौका को अपने से अलग नहीं कर सकता। वह नौका से चिपट जाता है। यह चिपट जाने वाली बात उस मनुष्य में उत्पन्न होती है जो शरीर और आत्मा को एक मानता है। नौका को साधन मात्र मानने की मति उस मनुष्य में जन्म लेती है जो नौका को केवल साधन मानता है और प्रयोजन सिद्ध होने पर उसे छोड़ देता है। यह व्यवहार का लोप नहीं है।
यह सच है कि उन लोगों ने बहुत बड़ी समस्याएं पैदा की हैं जो पदार्थ से चिपके रहे। सभी युद्धों का कारण भी यही चिपकाव रहा है। शरीर भी एक पदार्थ है। जो शरीर के साथ चिपका हुआ नहीं है वह किसी के साथ भी चिपका हुआ नहीं होता। जिस व्यक्ति का शरीर के साथ चिपकाव नहीं रहा, जो शरीर को जीवन-यापन का साधन मात्र मानकर चलता है, उस व्यक्ति ने दुनिया में कभी कोई अनर्थ पैदा नहीं किया। उस व्यक्ति ने द्वन्द्व या संघर्ष कभी उत्पन्न नहीं किया। क्योंकि वह मानकर चलता है कि पदार्थ मात्र साधन है, एक उपयोगिता है, चिपकाव की वस्तु नहीं है। एक आदमी पदार्थ को साधन मानता है और एक उसको अभिन्न मानता है। अभिन्न मानने से जो स्फुलिंग उछलते हैं, वे साधन मानने से
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