Book Title: Amurtta Chintan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 268
________________ अनुप्रेक्षा : प्रयोग और पद्धति २५७ की १५ मिनट तक पुनरावृत की जाए-पांच मिनट उच्चारण पूर्वक, पांच मिनट मंद उच्चारण पूर्वक और पांच मिनट मानसिक अनुचिंतन के रूप में। ६. महाप्राण ध्वनि के साथ ध्यान सम्पन्न करें। २ मिनट करुणा की अनुप्रेक्षा १. महाप्राण ध्वनि २ मिनट २. कायोत्सर्ग ५ मिनट ३. गुलाबी रंग का श्वास लें। अनुभव करें : श्वास के साथ गुलाबी रंग के परमाणु भीतर प्रवेश कर रहे हैं। .३ मिनट ४. आनन्द-केन्द्र पर गुलाबी रंग का ध्यान करें। ३ मिनट ५. आनन्द-केन्द्र पर ध्यान केन्द्रित कर अनुप्रेक्षा करें___'सम्यग् दृष्टिकोण का विकास हो रहा है। करुणा का भाव पुष्ट हो रहा है।' इस शब्दावलि का नौ बार उच्चारण करें। फिर इसका नौ बार मानसिक जप करें। ५ मिनट अनुचिंतन करें क्रोध, अहंकार और लोभ के आवेग मनुष्य को क्रूर बनाते हैं। क्रूर मनुष्य दूसरों को सताता है, ठगता है, अप्रिय व्यवहार करता है। कोई नहीं चाहता मेरे साथ अप्रिय व्यवहार हो तो फिर मुझे दूसरों के प्रति अप्रिय व्यवहार क्यों करना चाहिए ? मुझे अच्छा जीवन जीने के लिए, सामुदायिक जीवन को शांतिमय बनाने के लिए, करुणा का विकास करना है। मैं संकल्प करता हूं कि मेरे में करुणा का भाव पुष्ट होगा। १० मिनट ६. महाप्राण ध्वनि के साथ ध्यान संपन्न करें। २ मिनट प्रामाणिकता की अनुप्रेक्षा १. महाप्राण ध्वनि २ मिनट २. कायोत्सर्ग ५ मिनट ३. सफेद रंग का श्वास लें, अनुभव करें : श्वास के साथ सफेद रंग के परमाणु भीतर प्रवेश कर रहे हैं। ३ मिनट ४. ज्योति-केन्द्र पर सफेद रंग का ध्यान करें। ३ मिनट ५. ज्योति-केन्द्र पर ध्यान केन्द्रित कर अनुप्रेक्षा करें : 'मेरी संकल्प-शक्ति का विकास हो रहा है। प्रामाणिकता का भाव पुष्ट air mi Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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