Book Title: Amurtta Chintan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 269
________________ २५८ अमूर्त चिन्तन हो रहा है । इस शब्दावली का नौ बार उच्चारण करें। फिर इसका नौ बार मानसिक जप करें । ५ मिनट अनुचिंतन करें प्रामाणिकता एक असाधारण आवेग है । यह बहुत बड़ी बुराई है। जो भावना से अपरिपक्व होता है वही अप्रामाणिक व्यवहार करता है । मैं अप्रामाणिकता की वृत्ति पर विजय पा सकता हूं। जिस क्षण अप्रामाणिक व्यवहार करने की बात मन में आएगी, उसी समय बदल दूंगा। मैं अपने आपको भावित करता रहूंगा । कोई भी परिस्थिति मुझे अप्रामाणिक नहीं बना सकती। मैं अपने विवेक को काम में लूंगा । आवेगों के आधार पर काम नहीं करूंगा । मेरा दृढ़ निश्चय है कि मैं निरन्तर प्रामाणिकता का विकास करूंगा । ६. महाप्राण ध्वनि के साथ ध्यान सम्पन्न करें । २ मिनट भेद - विज्ञान की अनुप्रेक्षा महाप्राण ध्वनि कायोत्सर्ग ३. आनन्द केन्द्र पर ध्यान करें ४. आनन्द केन्द्र पर ध्यान केन्द्रित कर श्वास भरते हुए अनुप्रेक्षा ६ मिनट करें मेरी आत्मा इस भौतिक शरीर से भिन्न है - इस शब्दावली का नौ बार उच्चारण करें फिर इसका नौ बार मानसिक जप करें । १. २. ५. अनुचिन्तन करें स्थूल शरीर भौतिक पदार्थ वाला है । यही आसक्ति का मुख्य कारण है । जो इस आसक्ति को कम करता है । अथवा लगाव को कम करता है, वह दुःख, दर्द को कम महसूस करता है । इसलिए मैं शरीर की आसक्ति को कम करने के लिए भेद - विज्ञान का अभ्यास करूंगा । ६. महाप्राण ध्वनि के साथ प्रयोग सम्पन्न करें । र्ल शक्ति की अनुप्रेक्षा १. २. महाप्राण ध्वनि कायोत्सर्ग २ मिनट ५ मिनट ५ मिनट Jain Education International २ मिनट ५ मिनट अरुण रंग का श्वास लें । अनुभव करें-श्वास के साथ अरुण रंग For Private & Personal Use Only १० मिनट २ मिनट www.jainelibrary.org


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