Book Title: Amurtta Chintan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 272
________________ अनुप्रेक्षा : प्रयोग और पद्धति २६१ संयोग होता है, उसका निश्चित वियोग होता है। मानसिक समस्याओं के साथ संयोग का अनुचिंतन करें। अनुचिंतन करते-करते अनुभव के स्तर पर आएं। समस्याओं से अपने विसंबंध का अनुभव करें। ये उपाधि, आवेग-आवेश, क्रोध अहंकार, जितनी उपाधियां हैं, मात्र संयोग हैं। जो संयोग होता है, उसका निश्चित वियोग होता है। उपाधियों के साथ संयोग का अनुचिंतन करें। अनुचिंतन करते-करते अनुभव के स्तर पर आएं। उपाधियों से अपने विसंबंध का अनुभव करें। ये स्वभाव, आदतें (लड़ने की आदत, नशे की आदत, अलग-अलग प्रकार की आदतें) मात्र संयोग हैं। जो संयोग होता है उसका निश्चित वियोग होता है। ___ स्वभाव, आदतों के साथ संयोग का अनुचिंतन करें। अनुचिंतन करते-करते अनुभव के स्तर पर आएं। स्वभाव, आदतों से अपने विसम्बन्ध का अनुभव करें। कोई भी आदत शाश्वत नहीं है। वह बदली जा सकती है। यह सूक्ष्म शरीर जहां से उपाधियां आती हैं, मात्र संयोग है। जो संयोग होता है, उसका निश्चित वियोग होता है। सूक्ष्म शरीर के साथ संयोग का अनुचिंतन करें। अनुचिंतन करते-करते अनुभव के स्तर पर आएं। उपाधियों से अपने विसंबंध का अनुभव करें। मेरा चैतन्य स्थान, वस्त्र, शरीर, रोग, मानसिक उलझनें, आदतें सूक्ष्म-शरीर इन सबसे भिन्न है। इन सबके साथ संयोग जुड़ा हुआ है। जो संयोग होता है, उसका निश्चित वियोग होता है। इनके साथ संयोग का अनुचिंतन करें। अनुचिंतन करते-करते अनुभव के स्तर पर आएं। चेतन से इन सबके विसम्बन्ध का अनुभव करें। जिस क्रम से, स्थान से, जहां बैठे हैं, चले थे, अब फिर सब सयोगों को पार कर उसी क्रम में लौटें। सूक्ष्म शरीर का, आदतों का, रोग, मानसिक उलझनें, शरीर, कपड़े, आसन, स्थान प्रत्येक का अनुचिंतन करते-करते पुन: स्थान पर आएं। इमं सरीरं अणिच्चं, इमं सरीरं अणिच्चं, इमं सरीरं अणिच्चं-यह शरीर अनित्य है। प्रतिक्षण अनेक कोशिकाएं मिट रही हैं, नई बन रही हैं। कभी आशा, कभी निराशा, नाना प्रकार के परिवर्तन हो रहे हैं। इमे रोगा अणिच्चा-ये रोग अनित्य हैं, स्थायी नहीं हैं, चले जाने वाले हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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