Book Title: Amurtta Chintan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 196
________________ प्रामाणिकता अनुप्रेक्षा १८५ लोगों ने पूछा-यह कैसे, महाराज ! आपके पास तो कार है, फिर तांगे में कैसे ? उन्होंने कहा-मैं अपने काम से जा रहा हूं, कार विश्वविद्यालय की है। मैं अभी विश्वविद्यालय के काम से नहीं जा रहा हूं, मैं अपने काम से जा रहा हूं। यह है आर्थिक प्रामाणिकता। जोधपुर राज्य का दीवान था। दो दीए जलाया करता था अपने घर में। कोई देखने नहीं आता था, फिर भी उसके घर में दो दीये जलते थे। जब राज्य का काम करता तो राज्य का दीया जलता और जब घर का काम करता तो उस दीये को बुझा देता, अपना दूसरा दीया जला लेता। यह है आर्थिक प्रामाणिकता। प्रामाणिकता का तीसरा विषय है-व्यवहार की प्रामाणिकता। एक प्रकार का व्यवहार विश्वास पैदा करता है। और दूसरे प्रकार का व्यवहार अविश्वास पैदा करता है। समाज में बहुत अपेक्षा होती है कि अच्छा व्यवहार मिले। सब लोग अपेक्षा रखते हैं कि माता-पिता से यह व्यवहार मिले। पुत्र से पिता अपेक्षा रखता है कि यह व्यवहार मिले। पड़ोसी पड़ोसी से ऐसे व्यवहार की अपेक्षा रखता है। जहां व्यवहार की प्रामाणिकता होती है, समाज स्वस्थ रहता है और जहां व्यवहार में अप्रामाणिकता आ जाती है, बड़ी कठिनायां पैदा होती हैं समाज में। एक व्यक्ति ने बताया-मेरा पड़ोसी मेरे साथ विचित्र व्यवहार करता है। अपने घर से सारा कूड़ा-करकट निकालता है और उसे मेरे मकान के सामने डाल देता है। मैंने उसे बहुत समझाया-भाई, ऐसा मत करो। काफी समझाने पर भी नहीं माना तो सोचा, अब क्या किया जाना चाहिए। बड़ी समस्या है। तो फिर मेरे नौकर ने भी ऐसा ही शुरू किया। सारा कूड़ा-करकट वह निकालता और उसे साथ मिलाकर दोनों को उसके घर के आगे डाल देता। व्यवहार का यह जो एक संघर्ष होता है, व्यवहार की यह जो अप्रामाणिकता होती है, वह व्यक्ति को बड़े संकट में डाल देती है। जिस समाज में प्रामाणिकता का विकास होता है वह समाज आगे बढ़ता है, उन्नति करता है। जिस समाज में प्रामाणिकता नहीं होती उस समाज का भाग्य हमेशा खतरे में झूलता रहता है। समाज में सबसे पहला आश्वासन का सूत्र होता है-प्रामाणिकता। उसको भी जब खंडित कर दिया जाता है तो समाज कैसे सुख की सांस ले सकता है और कैसे भरोसे के साथ जीवन-यापन कर सकता है ? यह बात कुछ समझ में नहीं आती। पर पता नहीं, आज के इस बौद्धिक युग में, वैज्ञानिक युग में और प्रगतिशील विचारणा के युग में इतनी अप्रामाणिकता की बात क्यों चलती ही जा रही है ? आश्चर्य तो होता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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