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मृदुता अनुप्रेक्षा
कोमलता का नाम मृदुता है। यह सामूहिक जीवन की सफलता का सूत्र है। इसके द्वारा व्यक्ति के जीवन में सरसता रहती है। मृदु स्वभाव में लोच होती है। इस स्वभाव वाला व्यक्ति किसी भी वातावरण को अपने अनुकूल बना लेता है। बहुत बार कठोर अनुशासन से जो काम नहीं होता, वह मृदुता से हो जाता है। नैतिक चेतना का सूत्र है-मृदु व्यवहार। कुछ व्यक्ति क्रूर होते हैं। वे पशुओं के साथ तथा आदमियों के साथ ऐसा कठोर व्यवहार करते हैं कि उनकी क्रूरता प्रत्यक्ष हो जाती है। यहां का आदमी पशुओं के प्रति इतना क्रूर होता है कि उसमें नैतिकता का विकास कैसे हो सकता है ? आदमी व्यवहार में कितना क्रूर व्यवहार करता है ? दहेज की भूख क्या क्रूर व्यवहार नहीं है ? प्रतिवर्ष सैकड़ों मासूम बच्चियां दहेज की बलिवेदी पर आहूत होती हैं। जब ये सारी क्रूरताएं चलती हैं तब लगता है कि नैतिकता की बात है कहां ? हमने सबसे बड़ी भूल यह की है कि हमने नैतिकता को अलग मान लिया और धर्म को अलग मान लिया। परलोक को सुधारने के लिए धार्मिक होना जरूरी है, मोक्ष और स्वर्ग के लिए धार्मिक होना जरूरी है, नैतिक होना जरूरी है। आदमी नैतिक हो या न हो, धर्म करने वाला हो, पूजा-पाठ करने वाला हो, जाप करने वाला हो फिर वह दुकान और घर पर कैसा ही व्यवहार करने वाला क्यों न हो। वह मानता है कि व्यवहार कैसा भी हो, गलती होगी तो भगवान के भजन से सारा पाप धुल जाएगा। एक-दो बार भगवान की आरती करेंगे और बस, पाप से छुटकारा मिल जाएगा। फिर कल से नई शुरूआत, नया चिन्तन, नई प्रवृत्ति। जहां इस प्रकार की धारणा बन जाती है कि धर्म अलग, अध्यात्म और धर्म की चेतना अलग, नैतिक चेतना अलग तो वहां नैतिक चेतना के विकास की चर्चा करने में संकोच होता है। आज चेतना का आमूलचूल परिवर्तन करना है।
मनुष्य में तीन दुर्बलताएं होती हैं-क्रूरता, विषमता और स्वयं को हानि पहुंचाने वाली प्रवृत्ति। इनमें क्रूरता का स्थान पहला है। मैं व्यवहार में परिष्कार चाहता हूं-इस बात का अर्थ है कि व्यवहार में क्रूरता है वहां कोमलता, मृदुता चाहता हूं। करुणा चाहता हूं कि मेरा व्यवहार दूसरों के प्रति करुणा से भरा हुआ हो। क्रूरता का अंश धुल जाए, धुलता चला जाए। क्रूरता समाप्त हो जाए। पूरी क्रूरता समाप्त हो जाए। आज की सारी विसंगतियां,
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