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अमूर्त चिन्तन
गाय में भावात्मक परिवर्तन हुआ। वह घास भी अधिक खाने लगी और दूध भी अधिक देने लगी।
हम बाह्य को जानना ज्यादा पसन्द करते हैं। हमें कठपुतली ही दिखाई देती है जो बोलती है, नाचती है, गाती है, खेलती है। उसको जो पर्दे के पीछे संचालित कर रहा है, उस ओर ध्यान ही नहीं जाता। हमारे जीवन का संचालन भाव करते हैं, जो पर्दे के पीछे हैं। उनकी ओर हमारा ध्यान नहीं है। जब तक शिक्षा के साथ-साथ भाव-जगत् का सम्बन्ध नहीं जुड़ेगा तब तक न उपद्रव मिटेंगे, न हड़तालें समाप्त होंगी और न अनुशासन आएगा। हम बुद्धि के शस्त्र को तेज करते जा रहे हैं। उसका काम है काटना। नंगी तलवार बहुत खतरनाक होती है। उसके लिए म्यान चाहिए। म्यान में पड़ी तलवार खतरनाक नहीं होती। बुद्धि को हमने नंगी तलवार तो बना डाला, पर अब उस म्यान को खोज डालना आवश्यक है, जिससे कि सीधा खतरा न हो। यह है भाव-जगत् की क्रिया।
जीवन-विज्ञान का अर्थ पूरी शिक्षा-प्रणाली को बदलना नहीं है, बौद्धिक विकास को अवरुद्ध करना नहीं है। बौद्धिक विकास जरूरी है। उसके बिना आदमी पशुता की ओर चला जाएगा। जीवन-विज्ञान का अर्थ इतना ही है कि बौद्धिक विकास के साथ भावात्मक विकास का सन्तुलन हो। यह होने पर शिक्षा प्रणाली का कार्य पूरा होता है।।
भावात्मक विकास का एक पहलू है-नैतिक विकास। इसके दो रूप हैं-सामाजिक नैतिकता और वैयक्तिक नैतिकता। एक समाज या संस्था कुछ नियम उप-नियम बनाती है। वह ध्यान नहीं रखती है कि व्यक्ति की वासना, वृत्तियां, संवेग कैसे हैं ? विचार किए बिना वह बना देती है। यह सामाजिक नैतिकता और अनुशासन है। साम्यवादी देश का एक नैतिक-सूत्र बन गया है कि व्यक्तिगत स्वामित्व न हो। उसमें व्यक्तिगत वृत्तियों, वासनाओं और संवेगों का ध्यान नहीं रखा गया। आखिर व्यक्ति व्यक्ति होता है। उसमें वासना है, लोभ की वृत्ति है। उनकी उपेक्षा कर व्यक्तिगत स्वामित्व का नियंत्रण कर दिया। उसका परिणाम यह हुआ कि वह आर्थिक दौड़ में पिछड़ गया। जिसमें व्यक्तिगत स्वार्थ अधिक हो जाता है तो पुरुषार्थ कम हो जाता है। फलत: आर्थिक पिछड़ापन आ जाता है।
___ वैयक्तिक नैतिकता का अर्थ है-व्यक्तिगत संवेगों और वृत्तियों पर नियंत्रण करना।
- शिक्षा के साथ दोनों प्रकार की नैतिकताओं का संबंध होता है। विद्यार्थी समाज में जीता है। उसे सामाजिक प्राणी बनना है। उसको समाज के
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