Book Title: Amurtta Chintan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 263
________________ २५२ अमूर्त चिन्तन ____मैत्री की अनुप्रेक्षा १. महाप्राण ध्वनि २ मिनट २. कायोत्सर्ग ५ मिनट ३. सफेद रंग का श्वास लें। अनुभव करेंश्वास के साथ सफेद रंग के परमाणु भीतर प्रेवश कर रहे हैं। ३ मिनट ४. पूरे ललाट पर सफेद रंग का ध्यान करें। ३ मिनट ५. पूरे ललाट पर ध्यान केन्द्रित कर अनुप्रेक्षा करें ‘सब मेरे मित्र हैं। मैं सबके प्रति मैत्री का प्रयोग करूंगा'-इस शब्दावली का नौ बार अच्चारण करें फिर इसका नौ बार मानसिक जप करें। ५ मिनट शत्रुता का भाव भय पैदा करता है और भय शरीर एवं मन को दुर्बल बनाता है, इसलिये मुझे मैत्रीभाव का विकास करना चाहिए। जैसे ही शत्रुता का भाव आता है प्रसन्नता गायब हो जाती है। अपनी प्रसन्नता को सुरक्षित रखने के लिए मैत्रीभाव का विकास करना चाहिए। २ मिनट ६. महाप्राण ध्वनि के साथ ध्यान सम्पन्न करें। २ मिनट धैर्य की अनुप्रेक्षा १. महाप्राण ध्वनि २ मिनट २. कायोत्सर्ग ५ मिनट ३. पीले रंग का श्वास लें। अनुभव करेंश्वास के साथ पीले रंग के परमाणु भीतर प्रवेश कर रहे हैं। ३ मिनट ४. प्राण-केन्द्र पर पीले रंग का ध्यान करें। . ३ मिनट ५. प्राण-केन्द्र पर ध्यान केन्द्रित कर अनुप्रेक्षा करें _ 'मैं परिस्थिति को झेलने की क्षमता को विकसित करूंगा। उससे पराजित नहीं होऊंगा'-इस शब्दावली का नौ बार उच्चारण करें फिर इसका नौ बार मानसिक जप करें। ५ मिनट अनुचिंतन करें जिसमें उतावलापन होता है, जो उचित समय की प्रतीक्षा करना नहीं जानता, उसका मन अधिक चंचल हो जाता है। अधिक चंचलता मन को an is mi Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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