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अनुप्रेक्षा : प्रयोग और पद्धति
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स्वार्थ की अति होने पर दूसरों के हितों को हानि पहुंचा कर अपना हित साधने के लिए क्रूर आचरण और व्यवहार किये जाते हैं। उस स्थिति में स्वार्थ समाज के लिए खतरा बन जाता है। असीम स्वार्थ की अवस्था में क्रोध, चौर्य-वृत्ति, स्वादलोलुपता, असत्य, इन्द्रियलोलुपता, कामलोलुपता, अपराधी मनोवृत्ति, सामाजिक कर्त्तव्य की उपेक्षा, हित-शिक्षा के प्रतिकूल भाव, कटु वचन का प्रयोग, इस प्रकार की प्रवृत्तियां जन्म लेती हैं। इसलिए मुझे अति स्वार्थ से बचने का अभ्यास करना चाहिए।
स्वार्थी मनोवृत्ति से अल्पकालीन लाभ होते हैं, दीर्घकालीन नहीं। स्व को व्यापक बनाकर तथा स्वार्थ त्याग करने वाली महान् आत्माओं का जीवन-वृत्त पढ़कर उन्हें आदर्श मानकर स्वार्थ की संकुचित सीमाओं को तोड़ा जा सकता है।
१० मिनट ६. महाप्राण की ध्वनि के साथ ध्यान सम्पन्न करें। २ मिनट
ऋजुता की अनुप्रेक्षा १. महाप्राण ध्वनि
२ मिनट २. कायोत्सर्ग
५ मिनट अरुण रंग का श्वास लें। अनुभव करेंश्वास के साथ अरुण रंग के परमाणु भीतर प्रवेश कर रहे हैं।
३ मिनट ४. दर्शन-केन्द्र पर अरुण रंग का ध्यान करें। ३ मिनट ५. दर्शन-केन्द्र पर ध्यान केन्द्रित कर अनुप्रेक्षा करें
'ऋजुता का भाव पुष्ट हो रहा है। वक्रता का भाव क्षीण हो रहा है'-इस शब्दावली का नौ बार उच्चारण करें, फिर इसका नौ बार मानसिक जप करें।
५ मिनट ऋजुता और सत्य-दोनों परस्पर जुड़े हुए हैं। जहां ऋजुता है वहां सत्य है और जहां सत्य है वहां ऋजुता है। ऋजुता को छोड़कर सत्य की कल्पना नहीं की जा सकती।
ऋजु व्यक्ति ही अपने भावों को दूसरों तक सम्यग् प्रकार से पहुंचा सकते हैं और दूसरों के भावों को सम्यग् ग्रहण कर सकते हैं। ऋजु व्यक्ति ही कथनी और करनी की दूरी को कम कर सकते हैं। ऋजुता एक बहुत बड़ा मानवीय गुण है। मेरा संकल्प है कि मैं इसे अपने में विकसित करूं।
१० मिनट ६. महाप्राण ध्वनि के साथ ध्यान सम्पन्न करें।
२ मिनट
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