Book Title: Amurtta Chintan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 249
________________ २३८ अमूर्त चिन्तन पड़ता है। क्रोध का तीसरा प्रहार होता है-एड्रीनल ग्रन्थि पर। क्रोध के आते ही एड्रीनल ग्रन्थि को अतिरिक्त स्राव करना पड़ता है और उसकी शक्तियां क्षीण होने लगती हैं। इस प्रकार मस्तिष्क की शक्ति क्षीण होती है, हृदय की शक्ति क्षीण होती है और एड्रीनल ग्रन्थि की शक्ति क्षीण होती है। ये तीनों-मस्तिष्क, हृदय और एड्रीनल ग्रन्थि जीवन के महत्त्वपूर्ण अंग हैं। क्रोध के कारण इन तीनों की शक्तियां क्षीण होती हैं। जब मस्तिष्क की शक्तियां क्षीण होती हैं, तब सारा नाड़ी-तंत्र गड़बड़ा जाता है। जब हृदय की शक्ति क्षीण होती है तब समूचा रक्त-संचार अस्त-व्यस्त हो जाता है। जब एड्रीनल ग्रन्थि तंत्र की शक्तियां क्षीण होती हैं तब शक्ति की कर्मजा शक्ति नष्ट हो जाती है। ये हैं क्रोध के परिणाम। यह है उसका विपाक-विचय। अनुप्रेक्षा करते-करते जब मैं इन परिणामों पर पहुंचता हूं तब मुझे लगता है कि क्रोध कम करना चाहिए, उसे छोड़ देना चाहिए। . फिर प्रश्न होता है-क्या मैं क्रोध को छोड़ सकता हूं? साधक इस पर विचार करता है। इस प्रश्न पर विचार करते-करते वह इस तथ्य पर पहुंचता है कि मुझमें बहुत बड़ी क्षमता है। मैं क्रोध को छोड़ सकता हूं। इस चिंतन से वह अनुप्रेक्षा के अगले चरण तक पहुंच जाता है। वह विवेक पर पहुंच जाता है। कायोत्सर्ग का तीसरा सूत्र है-विवेक। साधक सोचता है कि मैं क्रोध को इसलिए छोड़ सकता हूं कि मैं क्रोध नहीं हूं। क्रोध मेरा स्वभाव नहीं है। यदि क्रोध मेरा स्वभाव होता तो मैं क्रोध को कभी नहीं छोड़ पाता। कोई भी व्यक्ति अपने स्वभाव को नहीं छोड़ सकता। किन्तु क्रोध मेरा स्वभाव नहीं है, स्वरूप नहीं है। मैं क्रोध नहीं हूं। मैं उससे भिन्न हूं। मैं ज्ञानमय हूं, मैं दर्शनमय हूं। मैं आनन्दमय हूं। क्रोध मेरे ज्ञान को आवृत करता है। क्रोध मेरे दर्शन को आवृत करता है। क्रोध मेरे आनन्द को आवृत करता है। उसे विकृत करता है। मेरी शक्तियों को विनष्ट करता है। इस चिन्तन से वह इस विवेक पर पहुंच जाता है-मैं क्रोध नहीं हूं और क्रोध मेरा स्वभाव नहीं स्वभाव परिवर्तन के तीन सूत्र हैं-कायोत्सर्ग, अनुप्रेक्षा और विवेक। जब साधक ने यह मान लिया कि क्रोध मेरा स्वभाव नहीं है, मैं क्रोध नहीं हूं तब यह बात बहुत सुलझ जाती है, ज्ञान स्पष्ट हो जाता है। जब ज्ञान स्पष्ट हो जाता है तब चरण अपने आप आगे बढ़ने लगते हैं। भगवान् ने कहा-'पढमं नाणं तओ दया'। पहले ज्ञान स्पष्ट होना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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