Book Title: Amurtta Chintan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 233
________________ २२२ अमूर्त चिन्तन न जाऊं। भय से उत्तेजना है। अन्तर अवयवों में उत्तेजना पैदा हो गयी। वह गेल्वेनोमीटर बता देगा की यह झूठ बोल रहा है। वह बता देगा कि इसने अपराध किया है। यह सारा होता है त्वचा-संवाहिता के द्वारा। त्वचा संवाहिता का मापन होता है और इस सचाई का पता चल जाता है। क्रोध का संवेग, भय का संवेग या दूसरे किसी प्रकार के संवेग की अवस्था में हमारी बाहर की मुद्रा भी भिन्न बनती है और भीतर की मुद्रा भी भिन्न बन जाती है। दोनों का पता लगाया जा सकता है। एक आदमी एक दिन में शायद सैकड़ों-सैकड़ों मुद्राएं बना लेता है। यदि कोई सूक्ष्म यंत्र या ऐसा संवेदनशील कैमरा हो हाइफ्रिक्वेंसी का तो प्रत्येक मुद्रा का भेद मापा जा सकता है। पांच मिनट पहले जो मुद्रा थी, पांच मिनट बाद रहने वाली नहीं है। जैसे-जैसे भीतर में भाव बदलेगा, तत्काल मुद्रा में परिवर्तन आ जाएगा और इसी आधार पर मुखाकृति-विज्ञान का विकास हुआ है। आकृति विज्ञान के आधार पर मनुष्य की सारी चेष्टाओं को बताया जा सकता है, उसके भविष्य का भी निर्धारण किया जा सकता है। जागृति का मूल-अभय प्रमाद भय है, अप्रमाद अभय है। भगवान महावीर ने कहा- 'सव्वओ पमत्तस्स भयं-प्रमाद को चारों ओर से भय घेर लेता है। सर्वत्र भय ही भय है उसके लिए। उसका एक क्षण भी अभय की दिशा में नहीं बीतता। उसका क्षण-क्षण भय में ही बीतता है। वह किसी पर विश्वास नहीं करता। उसे सबमें अविश्वास की गंध आती है। वह अपने धन की चाबी किसी को भी नहीं सौंपता। मन में भय रहता है कि कहीं वह धन लेकर भाग न जाए ? बेटे को भी नहीं, क्योंकि उसे भय है-धन की चाबी मिल जाने पर बेटा फिर उसे पूछेगा नहीं। उसे अपेक्षा नहीं रहेगी। अपनी पत्नी को भी नहीं, क्योंकि व्यक्ति सोचता है-मां और बेटा-दोनों मिलकर मेरी फजीहत करेंगे। मेरी टिकट कटा देंगे। व्यक्ति अन्तिम समय तक भी चाबी दूसरे को देना नहीं चाहता, क्योंकि उसमें भय है। भय प्रमाद है। कुछ लोग इसे जागरूकता भी कह देते हैं। परन्तु गहराई से सोचने पर प्रतीत होता है कि इस जागरूकता के पीछे भय काम करता है। यदि यह भय न हो कि ये बाद में मेरे साथ क्या करेंगे तो यह जागृति भी नहीं आती। इस जागृति का कारण भी भय है। कभी-कभी हम ऐसे कमरों में ठहरते हैं जहां आलमारियों में लाखों का धन पड़ा रहता है। न पहरेदार रहते हैं, न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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