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अमूर्त्त चिन्तन
बिलकुल प्रसन्नता । कोई समस्या नजर नहीं आती। कोई तनाव नहीं होता । भीतर में बिलकुल शांति। जब भय की भावधारा होती है । तो हमारा सिम्पैथैटिक नर्वस सिस्टम सक्रिय होता है यानी पिंगला सक्रिय हो जाती है और जब अभय की भावधारा होती है तो पैरा-सिम्पेथैटिक नर्वस सिस्टम सक्रिय हो जाता है, इड़ा नाड़ी का प्रवाह सक्रिय हो जाता है । उस समय कोई उत्तेजना नहीं होती, शांति और सुख का अनुभव होता है । सब कुछ अच्छा लगता है ।
प्रश्न है हम अधिक से अधिक अभय की मुद्रा में कैसे रह सकें ? अधिक-से-अधिक की अभय की भावधारा को कैसे प्रवाहित कर सकें ? अधिक-से-अधिक अभय को कैसे अनुभूत कर सकें ? यह हमारे सामने प्रश्न है । हमने भय की भी चर्चा की और अभय की भी । भय हेय है । अभय उपादेय । हमें भय की भावधारा को त्यागना है और अभय की भावधारा को विकसित करना है। इसके लिए तीन साधन अपेक्षित हैं- उपाय, मार्ग और साधना । अभय का विकास उपाय के बिना संभव नहीं, मार्ग और साधना के बिना संभव नहीं । खोज होगी उपाय की, मार्ग की और साधना की ।
एक उपाय है- अनुप्रेक्षा । अनुप्रेक्षा के द्वारा अभय की भावधारा को विकसित किया जा सकता है। शब्द की प्रणालियां हमारे शरीर के भीतर बनी हुई हैं । ये रास्ते, पगडंडियां, राजपथ हमारे शरीर में बने हुए हैं, जिनके माध्यम से तरंगें हमारे पूरे शरीर में व्याप्त हो जाती हैं और वे हमें प्रभावित करती हैं । तरंग का सिद्धांत बहुत व्यापक सिद्धांत है । 'क्वान्टम थ्योरी' का विकास हुआ तब से नहीं, किन्तु ढाई हजार, तीन हजार वर्ष पहले से यह प्रकम्पन का सिद्धांत प्रस्थापित है कि संसार में सब प्रकम्पन ही प्रकम्पन है, सब कुछ तरंग ही तरंग है । भय की तरंग उठी और भय के प्रकम्पन शुरू हो गए। यदि उस समय अभय की तरंग को उठा सकें, अभय के प्रकम्पनों को पैदा कर सकें तो भय की तरंग वहीं समाप्त हो जाएगी । यह अनुप्रेक्षा का सिद्धांत प्रतिपक्ष का सिद्धांत है कि एक-एक तरंग के द्वारा दूसरी तरंग की शक्ति को निरस्त किया जा सकता है और अच्छी तरंग को उठाया जा सकता है, बुरी को निरस्त किया जा सकता है। बुरी तरंग को पैदा किया जा सकता है, अच्छी तरंग को निरस्त किया जा सकता है। हमारे पुरुषार्थ पर, हमारे ग्रहण पर और हमारी दृष्टि पर यह निर्भर है कि हम किस समय क्या करते हैं और कैसा हमारा प्रयत्न होता है ? जिस व्यक्ति ने प्रेक्षा ध्यान का प्रयोग किया है, जिसने इस सचाई को समझा है कि शुभ भाव की तरंग के द्वारा
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