Book Title: Amurtta Chintan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 218
________________ सहिष्णुता अनुप्रेक्षा २०७ विकास करना होता है। स्वत: होता है। यह युक्तिकृत मनोबल है, युक्ति के द्वारा, सहिष्णुता के द्वारा मनोबल को बढ़ाना है। एक साथ अधिक कष्टों को सहन करना कठिन होता है, किंतु धीरे-धीरे आदमी को कष्ट-सहिष्णु बनने का अभ्यास करना ही चाहिए। परिवर्तन की प्रक्रिया-सहिष्णुता .. परिवर्तन की प्रक्रिया का सूत्र है-सहिष्णुता, सहन करना। परिवर्तन के लिए बहुत जरूरी है सहन करना। जो सहन करना नहीं जानता वह बदल नहीं सकता। पहले ही घबराता है कि मैं यह काम करता हूं, लोग क्या कहेंगे। गति वहीं समाप्त हो जाती है। व्यक्ति ने सोचा, लोग क्या कहेंगे ? पड़ोसी क्या कहेंगे ?. साथी क्या कहेंगे ? वहीं गति समाप्त हो जाती है। जो व्यक्ति बदलना चाहते हैं वे इस बात को सर्वथा समाप्त कर दें कि कौन क्या कहेगा। कोई सम्बन्ध नहीं रखता। मुझे क्या करना है ? केवल यही सम्बन्ध रखता है। आचार्यवर बहुत बार कहते हैं कि यदि हम यह देखते रहते कि लोग क्या कहेंगे तो कुछ भी नहीं कर पाते। जहां थे, वहीं रह जाते। सारा जो विकास हुआ है, इस आधार पर हुआ है कि लोग क्या कहेंगे, इस बात का मन में डर नहीं है, केवल चिंतन है कि क्या होना चाहिए। जो जो होना चाहिए वह किया गया, इसलिए आज हमारी यह स्थिति बन गई। डरते ही रहते तो यह स्थिति नहीं बनती। हमारी सहिष्णुता का विकास होना चाहिए। सहिष्णुता का अर्थ है-सर्दी को सहना, गर्मी को सहना । सर्दी मौसम की भी आती है और सर्दी भावना की भी आती है। गर्मी मौसम की भी आती है और गर्मी भावना की भी आती है। अनुकूल कष्ट का नाम है सर्दी और प्रतिकूल कष्ट का नाम है गर्मी। जिस व्यक्ति ने अपने शरीर से सर्दी और गर्मी को नहीं सहा, वह कच्चा आदमी रह गया। जिस व्यक्ति ने अपने मानसिक जगत् में अनुकूलता को नहीं सहा, प्रतिकूलता को नहीं सहा, वह साधना के क्षेत्र में कच्चा आदमी रह गया। जब चाहो तब उसे दु:खी बना सकते हो। कच्चे आदमी को दु:ख दिया जा सकता है। जो पक जाता है उसे दु:ख देना बड़ा कठिन होता है। जब तक मिट्टी का घड़ा कच्चा है, पक नहीं जाता तब तक काम का नहीं होता। न पानी रखा जा सकता है और न और कुछ रखा जा सकता है। उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। कच्चे पर कोई भरोसा नहीं किया जा सकता। भरोसा पैदा होता है पक जाने पर। मनष्य भी जब तक कच्चा होता है तब तक उस पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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