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सह-अस्तित्व अनुप्रेक्षा
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और लड़ाइयां। पहले ये बीज के रूप में पैदा होते हैं। बढ़ते-बढ़ते महायुद्ध का रूप धारण कर लेते हैं। एक-दो व्यक्तियों का झगड़ा विश्वयुद्ध बन जाता है । महायुद्ध कोई बड़ी बात के लिए नहीं होता । उसका मूल छोटा होता है । कारण बहुत ही सूक्ष्म होता है। महायुद्ध का कोई बड़ा कारण नहीं मिलेगा । छोटे-छोटे कारणों के लिए ही महायुद्ध लड़े गए हैं। थोड़ी-सी भूमि के लिए महायुद्ध हुए हैं । पत्नी को छुड़ाने के लिए महायुद्ध हुए हैं । हलके से तिरस्कार के लिए महायुद्ध हुए हैं। क्या यह संसार लड़ने के लिए ही है ? क्या मनुष्य सदा लड़ता ही रहेगा। क्या वह अपनी रुचि और विचारों को दूसरों पर थोपता ही रहेगा क्या इसके अतिरिक्त कोई तीसरा रास्ता भी है ? क्या ऐसा मार्ग भी है कि हम विरोधों के बीच में रहते हुए भी अविरोध का जीवन जी सकें? अनेक भेदों के बीच रहते हुए भी अभेद का जीवन जी सकें? यह प्रश्न उभरता है। अनेकान्त ने इस प्रश्न को समाहित करने के लिए मार्ग की खोज की। वह मार्ग है सह-अस्तित्व ।
सह-अस्तित्व : प्रकृति का नियम
आज राजनीति क्षेत्र में सह अस्तित्व पर बहुत बल दिया जाता है । को-एग्जिस्टेन्स का सिद्धांत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। जीवन की विभिन्न प्रणालियों में सह-अस्तित्व जरूरी है। एक समाजवादी विचारधारा है । दूसरी पूंजीवादी विचारधारा है। एक लोकतंत्र की प्रणाली है तो दूसरी एक तंत्र की प्रणाली है। दोनों प्रकार की विचारधाराएं, दोनों प्रकार का प्रणालियां आज संसार में प्रचलित हैं। दोनों विरोधी हैं । ऐसी स्थिति में होना तो यह चाहिए कि या तो समाजवाद रहे या पूंजीवाद, या तो लोकतंत्र रहे या एकतंत्र । दोनों नहीं रह सकते, क्योंकि दोनों एक-दूसरे के विरोधी हैं। या तुम रहोगे या मैं रहूंगा। दोनों साथ नहीं रह सकते ।
यदि इस भाषा में सोचा जाए कि या समाजवाद रहेगा या पूंजीवाद रहेगा, या तो लोकतंत्र रहेगा या एकतंत्र रहेगा, तब युद्ध के सिवाय दुनिया में कोई विकल्प शेष नहीं रहेगा। जब यह अनुभव किया गया कि युद्ध सबसे बड़ा शत्रु है और यह मनुष्य जाति को अपार संकट में डालने वाला है, तब उसको टालने की बात उठी। यदि विरोधी को समाप्त करने की नीति पर चलें तब युद्ध को टालने की बात आती ही नहीं। तो फिर एक विकल्प निकालना पड़ा। राजनीति के मंच पर यह घोषणा की गई कि सबका सह-अस्तित्व होना चाहिए। दोनों रह सकते हैं, दोनों जी सकते हैं। दोनों को जीने का अधिकार प्राप्त है। इस सह-अस्तित्व की नीति के आधार पर
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