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अमूर्त चिन्तन
__ मुझे नाम से कोई मोह नहीं है। मुझे आकार से कोई मोह नहीं है। जिस आत्मा के भव-बीज के उत्पादक राग-द्वेष समाप्त हो चुके हैं, क्षीण हो चुके हैं, फिर चाहे वह ब्रह्मा हो, विष्णु हो, महादेव हो या जिन हो, उन सबको मेरा नमस्कार।
.. बात सारी समन्वय में बदल गई। यह हमारी समन्वय की चेतना जागे। हम भेद में से अभेद खोज सकें, विरोध में अविरोध को खोज सकें और समन्वय के द्वारा टकराव की स्थिति को टाल सकें, सह-अस्तित्व और समन्वय का विकास कर सकें तो समाज सुन्दर होगा, स्वस्थ्य होगा और हमारा सामाजिक स्वास्थ्य विकसित होगा। इसके बिना सामाजिक स्वास्थ्य की कल्पना नहीं की जा सकती। जो लोग प्रशासन में जाने वाले हैं, प्रशासन के क्षेत्र में जिन्हें काम करना है उनके लिए बहुत आवश्यक है कि वे सह-अस्तित्व और समन्वय की चेतना को जागृत करने का अभ्यास करें। पक्ष और प्रतिपक्ष
प्रत्येक पदार्थ अपने विरोधी पदार्थ से जुड़ा हुआ है। वैज्ञानिकों ने प्रतिकण को खोजने के लिए सूक्ष्म उपकरणों का प्रयोग किया। ऐसा सूक्ष्म यंत्र बनाया गया जो एक सेकण्ड के पन्द्रहवें अरब हिस्से में होने वाले परिवर्तन को पकड़ ले। तब उन्हें प्रतिकण का पता चला। आज यह सिद्धांत प्रतिष्ठापित हो चुका है कि प्रतिकण के बिना कण का अस्तित्व नहीं हो सकता। दोनों का होना अनिवार्य है। अनेकांत का मूल आधार है-विरोधी के अस्तित्व की स्वीकृति, प्रतिपक्ष की स्वीकृति। इस स्वीकृति से ही अनेकांत का विकास होता है। अनेकांत कहता है-सत्य को एक दृष्टि से मत देखो। सत्य को अस्तित्व की दृष्टि से देखते हो तो साथ-साथ उसे नास्तिक की दृष्टि से भी देखो। स्वीकृति के साथ अस्वीकृति-दोनों साथ-साथ चलनी चाहिए। एक से काम नहीं चलता। सह-अस्तित्व की खोज . यह संसार ही ऐसा है। प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि वह जैसा बोलता है, सब वैसे ही बोलें। वह जैसा चलता है. सब वैसे ही चलें। वह जैसे कपड़े पहनता है, सब वैसे ही कपड़े पहनें। वह जैसा आचरण या व्यवहार करता है, सब वैसा ही आचरण या व्यवहार करें। यह चाह सबकी होती है। पर ऐसा होता नहीं। विरोधी रुचियां हैं। विरोधी प्रकृतियां और विरोधी विचार हैं। विरोधी स्वभाव और विरोधी आदतें हैं। इन्हीं का परिणाम है-टक्कर, संघर्ष
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