________________
सह-अस्तित्व अनुप्रेक्षा
१९७
स्वार्थ की प्रबलता है, जिसमें मान्यता का आग्रह है और जो असहिष्णु है, वह समन्वय की चेतना को जागृत नहीं कर सकता। स्वार्थ का भी समीकरण करना होता है।
पुराने समय में साम्प्रदायिक संघर्ष और जातीय संघर्ष-ये दो संघर्ष थे। आज तीसरा संघर्ष और सामने आया है। वह है-वर्ग संघर्ष-इसका जन्म आज की राजनीति से हुआ है। यह वर्ग-संघर्ष भी तब तक नहीं मिट सकता, जब तक स्वार्थ का समीकरण नहीं होता। आज एक वर्ग के स्वार्थ दूसरे वर्ग के स्वार्थों से टकराते हैं। मिल-मालिकों का स्वार्थ मजदूरों से टकराता है। संपन्न व्यक्ति के स्वार्थ गरीब आदमी से टकराते हैं। यह टकराव इसलिए है कि स्वार्थ का समीकरण नहीं होता। . ____ एक घटना है। कुम्हार के दो लड़कियां थीं। एक किसान के यहां ब्याही थी और दूसरी का विवाह एक कुम्हार के यहां हुआ था। एक दिन पिता पुत्रियों से मिलने गया। किसान के यहां विवाहित बेटी ने कहा-पिताजी! बड़ी मुसीबत है। खेत बो दिए हैं। बरसात नहीं आ रही है। आकाश में बादल हैं ही नहीं। सारा श्रम नष्ट हो जाएगा। आप प्रार्थना करें कि बरसात आ जाए। पिता दूसरी बेटी के यहां गया। उसने कहा-पिताजी ! सारे भांड आवे में पक रहे हैं। कहीं बरसात न आ जाए। पिता की समस्या थी कि वह किसके कल्याण की कामना करे।
- पिता किसान के यहां ब्याही पुत्री के पास जाकर बोला--'एक काम करना। वर्षा आ जाए, खेती अच्छी हो तो आधा हिस्सा अपनी बहिन को दे देना।' उसने स्वीकार कर लिया। फिर पिता कुम्हार के यहां ब्याही पुत्री के पास जाकर बोला-वर्षा न आए, खेती न हो, आंवा ठीक पके तो आधा हिस्सा अपनी बहिन को दे देना। उसने स्वीकार कर दिया। यह समीकरण होने पर दोनों प्रसन्न हो गईं।
महाराज जयसिंह और सिद्धराज्य-ये दो गुजरात के प्रसिद्ध शासक हुए हैं। ये समन्वयवादी थे। आचार्य हेमचन्द्र उनके गुरुतुल्य थे। एक बार महाराज सिद्धराज शिवमंदिर में गए। आचार्य हेमचन्द्र साथ थे। वहां किसी व्यक्ति ने कहा कि आचार्य हेमचन्द्र आपके साथ तो हैं पर ये शिव की स्तुति नहीं करते। महाराज ने पूछा-आचार्यवर ! क्या आप शिव की स्तुति कर सकते हैं ? उन्होंने कहा-क्यों नहीं कर सकता ? कर सकता हूं। उन्होंने तत्काल महादेव पर चवालीस श्लोक कहे। प्रथम श्लोक में उन्होंने कहा
'भवबीजांकुरजनना, रागाद्या: क्षयमुपागता: यस्य । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा, हरो जिनो वा नमस्तस्मै ।।'
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org