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अमूर्त चिन्तन
बहुत अवकाश रहता है। किन्तु आप निश्चित मानिए कि कल्पना तब तक अर्थवान् नहीं होती जब तक कि 'भोगे हुए यथार्थ' पर हम नहीं चल पाते। हमारा जीवन यथार्थ का होना चाहिए।
हमारी कल्पनाएं तब तक अर्थवान् नहीं होती, मूल्यवान् नहीं होती जब तक हमें यथार्थ का बोध नहीं होता, अपने ही पैरों के नीचे भी भूमि का बोध नहीं होता। यथार्थ पर चले बिना कोई भी आदमी आगे नहीं बढ़ सकता। दुनिया में इतने गड्ढे हैं कि पग-पग पर उसमें गिर पड़ने की संभावना बनी रहती है। गड्ढों को पार कर वही आगे बढ़ सकता है जो यथार्थ की आंख से अपने पैरों के नीचे धरातल को देखकर चलता है। आज की सामाजिक परिस्थिति, आज की राजनैतिक परिस्थिति और आज की धार्मिक परिस्थिति-तीनों परिस्थितियां हमारे सामने हैं। दुनिया का जो वातावरण है, उससे कोई भी बच नहीं सकता। जो व्यक्ति व्यवहार में चलता है, वह स्वयं प्रभावित होता है और प्रभावित करता है। हम प्रभावों को ग्रहण करते हैं किन्तु आने वाले प्रभावों से अपने आपको कितना बचा सकते हैं और कितना लाभ उठा सकते हैं, यह है यथार्थ की भूमिका । यदि हम इस भूमिका पर वास्तव में चलें तो जो प्रभाव आ रहे हैं उनसे लाभ उठा सकते हैं। लाभ उठाना बहुत जरूरी है, क्योंकि मैं मानता हूं कि वर्तमान में बहुत सारी चीजें ऐसी अच्छी हैं जो पुराने काल में नहीं थीं। उन-उन चीजों से हमें लाभ भी उठाना चाहिए। कुछ चीजें व्यर्थ होती हैं, उनसे अपने आपको बचाना चाहिए। दोनों बातें बराबर होनी चाहिए। उसके लिए यथार्थ की भूमिका पर चलना बहुत जरूरी है।
आज युवक का मतलब एक क्रांति' से जुड़ गया। आवेश और युवक एक दूसरे के पर्याय जैसे हो गए। एक बार मैं डॉ० कोठारी से बात कर रहा था। मैंने पूछा, 'आज के विश्वविद्यालयों में इतने उग्र आंदोलन हो रहे हैं तो क्या आप इनसे सहमत हैं ?' उन्होंने कहा, देखिए महाराज ! मैं मानता हूं कि आज व्यापारी वर्ग में कोई क्षमता नहीं है। राज्य कर्मचारियों में तो है ही नहीं कि वे बुराई का प्रतिकार कर सकें। आज जितना अन्याय चल रहा है, उसके प्रति एकमात्र प्रतिकार की शक्ति किसी में है तो वह है युवक और विद्यार्थी में। विद्यार्थी ही सचमुच क्रान्ति कर सकता है और उसमें वह क्षमता भी है। इसलिए विद्यार्थी की क्षमता को और उसकी क्रांति करने की शक्ति को हमें नहीं कुचलना है, नहीं रोकना है। मैं युवक के इस पक्ष का समर्थक हूं। किन्तु इतना जरूर है कि आवेश के स्थान पर थोड़ा संतुलन, थोड़ा विचार
और थोड़ा विवेक होना चाहिए।' उनकी शक्ति को रोकना नहीं है। शक्ति का उपयोग करना है और शक्ति का उपयोग होना भी चाहिए। इण्डोनेशिया में
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