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अमूर्त चिन्तन
हैं। कुछ लोग समाज का आग्रह रखते हैं। राजनीतिक प्रणालियों में, समाजवादी और साम्यवादी प्रणाली में केवल समाज पर सारा भार डाल दिया जाता है। इधर व्यक्ति का विकास सब-कुछ है तो उधर समाज का विकास ही सब-कुछ है। किन्तु व्यक्ति और समाज के सम्बन्धों का तब तक सम्यक् निर्धारण नहीं किया जा सकता जब तक कि हमारा दृष्टिकोण सापेक्ष नहीं होता। व्यक्ति-निरपेक्ष समाज और समाज-निरपेक्ष व्यक्ति का कोई मूल्य नहीं होता। समाज-सापेक्ष व्यक्ति और व्यक्ति-सापेक्ष समाज का ही मूल्य हो सकता है और तभी सम्यक् विकास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सकता है।
सत्यग्राही दृष्टिकोण का एक सूत्र है-सापेक्षता। यह सापेक्षता प्रातिभज्ञान और तार्किकज्ञान में भी विकसित होती है। केवल तार्किकज्ञान नहीं, केवल अन्तर्दृष्टि का ज्ञान नहीं, केवल अध्यात्म नहीं और कोरा व्यवहार नहीं। कोरा व्यवहार होता है तो स्थूलता आ जाती है। इतनी स्थूलता कि सत्य कहीं छूट जाता है। कोरा निश्चय होता है तो अध्यात्म में कोई शक्ति नहीं आती। दोनों जरूरी होते हैं। यानी सम्प्रदाय भी आवश्यक है और अध्यात्म भी आवश्यक है। अगर सम्प्रदाय-शून्य अध्यात्म होता है तो वह कुछ व्यक्तियों के लिए काम का होता है, जनता के लिए कोई काम का नहीं बनता। कुछ व्यक्ति कन्दराओं में बैठकर अध्यात्म की साधना कर लें, पर शेष लोग बिलकुल वंचित रह जाते हैं और उनके जीवन का कोई मार्ग निश्चित नहीं होता। जरूरी है समाज, जरूरी है संघ, जरूरी है संगठन और जरूरी है सम्प्रदाय। जो लोग संगठन का विरोध करते हैं, सम्प्रदाय का विरोध करते हैं, संघ का विरोध करते हैं, केवल अकेलेपन की बात करते हैं, वे भी सचाई को नहीं पकड़ पा रहे हैं। उनका भी आग्रह हो गया कि अकेला होना अच्छा है। एक-दो आदमी अच्छे हो गए। उससे क्या हुआ ? जिस दुनिया में जीना है, क्या वहां अकेला व्यक्ति भी रह सकेगा। पहले तो मान लिया जाता था कि हिमालय की कंदरा में जाकर बैठ गया, अब वह शांति का जीवन जी सकता है। किन्तु एक ओर तो अणुअस्त्रों की विभीषिका, सारा वातावरण प्रदूषण से व्याप्त, इस स्थिति में क्या हिमालय बचा रह पाएगा ? आज हिमालय भी प्रदूषण से वंचित नहीं है। दुनिया का कोई भी कोना प्रदूषण से वंचित नहीं है। कहां जाएगा ? कौन-सी गुफा है ? कौन-सी कंदरा है जहां जाकर व्यक्ति अकेलेपन का अनुभव कर सके ? यह संक्रमण की दुनिया है। एक विचार यहां बैठे व्यक्ति के मन में पैदा होता है, और उस विचार के परमाणु सारे संसार में फैल जाते हैं। न हिमालय बचता है और न कोई गुफा ही बचती है। इस संक्रमण की दुनिया में हमारे पास ऐसा कौन-सा कवचं है कि हम अपने
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