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अमूर्त चिन्तन
विचार-संप्रेषण की साधना की जाती थी जिससे विचारों का आदान-प्रदान हो जाता था। प्रेक्षाध्यान पद्धति
प्रेक्षाध्यान की पद्धति एक वैज्ञानिक पद्धति इस अर्थ में है कि केवल अंधेरी कोठरी में ढेला फेंकने की बात इसमें नहीं है। पूरे विज्ञान के साथ यह चलती है। कारण और परिणाम-दोनों का स्थान इसमें है। इस आदत का कारण क्या है और इसका परिणाम क्या है ? इसके बदलने का हेतु क्या है ? इसकी प्रक्रिया क्या है ? यह सब बहुत स्पष्ट है गणित की भांति। किसी को संदेह करने की जरूरत नहीं। शरीर-विज्ञान के साथ-साथ अध्यात्म-विज्ञान को जानने वाला, इस सचाई को बहुत जल्दी पकड़ लेता है। उसकी समझ में आ जाता है कि हमारे शरीर में जो विशिष्ट केन्द्र हैं चेतना के, उनका फंक्शन कैसे बदलता है और उसका परिणाम क्या होता है। यह केवल शरीर-विज्ञानी नहीं जानता। ये दोनों-शरीर-विज्ञान और अध्यात्म-विज्ञान जुड़ जाएं तो सामाजिक जीवन की पद्धति बदल सकती है। अभी अधूरी-अधूरी बात चल रही है, इसलिए आज अपेक्षा है कि सामाजिक शिक्षा के साथ अध्यात्म की शिक्षा जुड़े और सामाजिक जीवन प्रणाली के साथ अध्यात्म की जीवन प्रणाली जुड़े। दोनों का योग हो जाए। दोनों का योग होने पर ही नई चेतना जाग सकती है, चेतना का रूपान्तरण हो सकता है। हमारा मुख्य लक्ष्य है-चेतना का रूपान्तरण। शरीर का रूपान्तरण साध्य नहीं है। इसका चिकित्सात्मक पहलू भी है किन्तु वह मुख्य लक्ष्य नहीं है। मुख्य लक्ष्य है-चेतना का रूपान्तरण, चेतना की चिकित्सा।
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