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अमूर्त चिन्तन
नहीं बदलती, बल्कि यह प्रक्रिया सूक्ष्म जगत् तक पहुंचकर हमारे सूक्ष्म शरीर-तैजस-शरीर और कर्म-शरीर को भी प्रभावित करती है। वहां पहुंचकर विकृतियों के अस्तित्व को ही समाप्त कर देती है। कर्म-शरीर सारी विकृतियों का मूल है। ध्यान की प्रक्रिया से उस पर प्रहार होता है। ध्यान की प्रक्रिया : महानतम खोज
ध्यान प्रक्रिया की खोज विश्व की महानतम खोज है। जो व्यक्ति तरंगातीत अवस्था को प्राप्त करने की दिशा में एक चरण भी आगे रखते हैं, जो सत्य की दिशा में एक चरण भी आगे बढ़ाते हैं, वे वास्तव में सत्य-साक्षात्कार की दिशा में प्रस्थित हैं। उनकी संख्या चाहे दो-चार ही हो या अधिक हो, संख्या गौण है। मूल है उस दिशा में प्रस्थान। _मैंने अनुभव किया है कि जब तक धर्म के साथ विज्ञान की दो महत्त्वपूर्ण बातें-प्रयोग और परीक्षण नहीं जुडेंगे, तब तक धर्म का भला नहीं होगा। हम प्रयोग करें, परीक्षण करें। देखें तो सही। आज पचास वर्ष हो गए धर्म करते-करते, क्या परिवर्तन आया जीवन में ? क्या गुस्सा कम हुआ ? आदत बदली ? संस्कार बदला ? नशे की आदत में कोई परिवर्तन आया ? काम-वासना में कोई परिवर्तन आया ? कुछ कम हुआ तो बहुत अच्छी बात है। अगर नहीं तो फिर क्या हुआ ? प्रभु का नाम लेते हैं, भजन-चिन्तन करते हैं, आराधना करते हैं, उपासना करते हैं। जो भी क्रिया-काण्ड करते हैं, क्या मन उस पर टिकता है ? एक विषय पर पांच मिनट तो टिकता होगा। उत्तर मिलता है-पांच मिनट तो क्या पांच सैकण्ड भी नहीं टिकता। दुकान पर बैठते हैं तो मन फिर भी टिक जाता है, पर माला फेरने बैठते हैं तो मन इतना चंचल हो जाता है कि जो बातें कभी याद नहीं आती वे याद आती हैं।
मेरा दूसरा प्रश्न होता है कि तो फिर कैसे हुआ ? जब मन ही नहीं टिकता, चेतना ही नहीं टिकती तो फिर धर्म कौन करता है, शरीर या चेतना? ये अंगुलियां धर्म करती हैं या चित्त ? धर्म करने वाला है हमारा चित्त, हमारी चेतना। वे जब टिकते नहीं तो धर्म कौन करता है ?
जब धार्मिक ने पहला पाठ ही नहीं पढ़ा कि मन की चंचलता कैसे कम करूं तो धर्म क्या हुआ ? हम लोग आगे की बात करते हैं-आत्मा, परमात्मा, सृष्टि, अद्वैत, स्वर्ग. नरक, पूर्वजन्म, पुनर्जन्म, मोक्ष। किन्तु जिन चर्चाओं को समझने के लिए चित्त की स्थिरता चाहिए, वह हमें प्राप्त नहीं होती। कुंजी तो हमें प्राप्त ही नहीं है, तो इतने बड़े-बड़े तालों को कैसे खोलेंगे ?
आज धर्म के साथ प्रयोग की आवश्यकता है। यदि धर्म के साथ प्रयोग
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