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सत्य अनुप्रेक्षा
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साथ प्रयोगशाला कहां है ? कैसे करेंगे सत्य की खोज ? सत्य खोज के लिए समृद्ध प्रयोगशाला चाहिए। वह यहां नहीं है। बात सच है, किन्तु हमने अपने शरीर को ही प्रयोगशाला बना डाला है। यह शरीर इतनी बड़ी प्रयोगशाला है कि विश्व के किसी भी वैज्ञानिक के पास इतनी समृद्ध और विशाल प्रयोगशाला नहीं है। इस शरीर में इतनी सूक्ष्म यंत्र-संरचना है जो बड़े वैज्ञानिकों को भी आपचर्स में डाल देती है। एक वैज्ञानिक की प्रयोगशाला नहीं, किन्तु यदि विश्व की समस्त प्रयोगशालाओं को एकत्रित कर लिया जाए, फिर भी वे इस शरीर की प्रयोगशाला के एक अरबवें हिस्से में नहीं समा पाती। तुलना ही नहीं की जा सकती।
यह हमारा शरीर साधन-सम्पन्न प्रयोगशाला है। यह हमारे सामने है। हमें सत्य की खोज करनी है। प्रयोग के साधन और उपकरण भी हमारे पास हैं। चैतन्य के ये सारे प्रयोग हमारी खोज के सूक्ष्मतम उपकरण हैं। आज सूक्ष्म तरंगों वाले या सूक्ष्म शक्ति वाले या हाईफ्रीक्वेन्सी वाले जितने भी सूक्ष्म उपकरण होते हैं वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में, वे सारे-के-सारे या उनसे भी अधिक सूक्ष्म उपकरण, हमारे इस शरीर में प्राप्त हैं। वे स्वत: संचालित हैं। किन्तु उसको काम में न लेने के कारण उन पर जंग जम गया है, वे निष्क्रिय हो गए हैं। हमने यात्रा प्रारम्भ की है। हम उस जंग को हटाने का प्रयास कर रहे हैं। जैसे ही वह जमा हुआ मैल हटेगा, ये सारे उपकरण पूरा काम देने लग जायेंगे। उन्हीं उपकरणों के द्वारा हम सूक्ष्मतम सत्य को पहचान जायेंगे। समस्या है सत्य की अनभिज्ञता
इस दुनिया में सबसे बड़ी समस्या है सत्य को जानना। हमारी सारी कठिनाइयों और समस्याओं का मूल है सत्य को न जानना। आदमी यदि सत्य को जान लेता तो कोई समस्या नहीं होती। दुनिया में वस्तुत: कोई समस्या है ही नहीं, केवल सत्य की अनभिज्ञता ही समस्या है।
प्रकाश और अन्धकार दोनों विरोधी युगल हैं किन्तु इनमें नितान्त विरोध नहीं है। दोनों एक साथ आ जाते हैं। सह-अस्तित्व और सह-अवस्थान दोनों ही जरूरी हैं। स्याद्वाद विरोधी तत्त्वों की व्याख्या करता है। दो विरोधी तत्त्वों को, विरोधी बातों को एक साथ स्वीकारना ही है स्याद्वाद और अनेकान्त । अनेकान्त और स्याद्वाद का फलित है सह-अस्तित्व।
सत्य विशाल है और शब्द सीमित । सत्य की अभिव्यक्ति के लिए शब्द होते हैं। परन्तु वे उसको सीमित बना देते हैं। यही कारण है कि जो शास्त्र
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