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अमूर्त चिन्तन
भविष्यकाल और वर्तमानकाल । क्यों विभाजित किया ? काल कभी विभक्त होता नहीं, टूटता नहीं । काल कभी ऐसा नहीं होता कि आप उसे अतीत मानें। आज का वैज्ञानिक इस ओर परीक्षण में संलग्न है कि दो हजार, पांच हजार वर्ष पूर्व हुए महावीर, बुद्ध, कृष्ण आदि महान् व्यक्ति को साक्षात् सन्देश देते हुए आज के आदमी को दिखा दिया जाए। वर्तमान में जीने वाला आदमी महावीर को समता और अहिंसा का प्रवचन करते हुए, बुद्ध को करुणा का सन्देश देते हुए और कृष्ण को गीता का उपदेश करते हुए साक्षात् देख ले, उसे दिखा दिया जाए। क्या ऐसा संभव हो सकता है ? साधारण व्यक्ति के लिए यह असम्भव प्रतीत हो सकता है, क्योंकि जो मर चुके, समाप्त हो चुके, जिनके पार्थिक शरीर जला दिए गए, उनको कैसे दिखाया जा सकता है ? यह तो अतीत की घटना हो गई। अतीत को वर्तमान के रूप में कैसे रूपायित किया जा सकता है ? मेरे लिए और आपके लिए यह अतीत की घटना हो सकती है, किन्तु देश और काल को सापेक्ष मानने वाले वैज्ञानिक के लिए यह अतीत की घटना नहीं है ।
छोटा-बड़ा सब सापेक्ष होता है । हलका और भारी सापेक्ष होता है । गुरुत्वाकर्षण की सीमा में हलका भी होता है और भारी भी होता है। जहां गुरुत्वाकर्षण की सीमा समाप्त होती है वहां हलकापन भी नहीं रहता और भारीपन भी नहीं होता । चिकना, मृदु और कठोर - तीनों सापेक्ष हैं। कौन चिकना ? कैन मृदु ? कौन कठोर ? सारे यौगिक हैं । हमारी सारी बातें सापेक्ष होती हैं। जब हम 'स्यात्' शब्द को अस्वीकार कर देते हैं, अपेक्षा को भुला देते हैं, वहां बड़ी कठिनाई पैदा हो जाती है । बतलाया गया है कि देवताओं का आयुष्य करोड़ों-करोड़ों वर्षों का होता है यह आश्चर्यकारी कथन लगता है। परन्तु कोई आश्चर्य नहीं है । हम सापेक्षता को न भूलें। जो अन्तरिक्ष गुरुत्वाकर्षण से परे है, वहां काल की सीमा समाप्त हो जाती है । यहां का हजारों वर्षों का काल-माप वहां एक क्षण जैसा भी नहीं होता । जैनागमों में एक प्रसंग आता है । कोई व्यक्ति मरा। वह स्वर्ग में गया। उसने सोचा- 'मैं फिर जाऊं मनुष्यलोक में और अपने परिवार वालों से मिलूं। मैं अपने गुरुजनों से मिलूं, मित्रों से मिलूं ।' मन में बात आई और उसने तैयारी शुरू की। सब देव बोले- कहां जा रहे हो ? उसने कहा- मनुष्यलोक में जा रहा हूं, अपने परिजनों से मिलने के लिए। वे बोले-अभी - अभी आए थे। दो मिनट ठहरो । यहां की रंगरेलियां देखो। वह ठहर जाता है, उसे लगता है क्षण भर हुआ है। वह वहां से चलकर मनुष्यलोक में आता है, मां, बाप, भाई, बदन और मित्रों को खोजता है। पूछता है लोगों से, कोई कुछ भी नहीं बता
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