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अमूर्त चिन्तन
देना चाहिए। क्यों भार ढोते फिरेंगे इनका, यदि कोई प्रयोग नहीं हो सकता है तो ? क्या केवल शब्दों का भार ढोना है ? आगे ही सिर पर बहुत भार है और बेचारे गृहस्थों पर कितना भार है ! कमाई का भार, परिवार को चलाने का भार, महंगाई का भार, कितनी समस्याओं का भार, इनकमटैक्स का भार, मृत्यु टैक्स का भार, सारे भार ढोते-ढोते छोटे-से दिमाग को परेशानी हो रही
आज के युवक में कहां है अध्ययन ? मैं मानता हूं कि क्रियान्विति के लिए सबसे पहले विचार-विकास की आवश्यकता होती है। बौद्धिक क्षमता बढ़ती है तो सारी बातें बढ़ती हैं। आज के संसार में बौद्धिक विकास चरम सीमा को छू रहा है। प्रतिदिन नये-नये आयाम खुल रहे हैं। साधारण-से-साधारण विषय पर इतना अन्वेषण और सूक्ष्म अध्ययन हुआ है कि एककोषीय जीव जैसे साधारण-से लगने वाले विषय पर चेम्बर डिक्शनरी' जैसी बीस-बीस पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं। जो व्यक्ति आज के विचार और विकास के सम्पर्क में नहीं रहता, अगर दो सप्ताह तक वह उससे कट जाता है तो वह पिछड़ जाता है। इतनी तेज गति से और इतनी तेज रफ्तार से मनुष्य का ज्ञान बढ़ता चला जा रहा है। उस स्थिति में यदि अध्ययन की उपेक्षा की जाती है तो व्यक्ति युग के साथ कैसे चल सकता है ? कैसे हमारा युग-बोध स्पष्ट हो सकता है ? आज का युवक पढ़ता तो है किन्तु ऐसे उपन्यास जो रोमांटिक हैं, ऐसे उपन्यास जो जासूसी से भरे-पूरे हैं। वे कहानियां जो सेक्स से भरी-पूरी हैं, जीवन के विकास में इनका कोई बड़ा योगदान नहीं होता। जब तक अध्ययन की गम्भीरता नहीं आती तब तक कोई बड़ी बात नहीं हो सकती। निश्चित मानिए-ऊंचाई हमेशा गम्भीरता के साथ पैदा होती है बड़े भवन को खड़ा करना है, पचास मंजिल और सौ मंजिल का प्रासाद खड़ा करना है तो गहराई में जाना होगा। उस मकान को बालू की नींव पर खड़ा कर दें या बिना नींव के खड़ा कर दें, किन्तु वह टिकेगा नहीं, ढह पड़ेगा। मजबूत मकान के लिए मजबूत नींव की आवश्यकता होती है। गहराई के बिना ऊंचाई सम्भव नहीं है। हम तीन आयामों में फैलते हैं-लम्बाई, ऊंचाई और चौड़ाई । इन सारी बातों में फैलने के लिए गहराई की बहुत जरूरत है और गहराई विचार विकास के बिना नहीं आ सकती। आज तत्त्वज्ञान का जितना विकास हुआ है, सत्य का जितना प्रकटीकरण हुआ है, जितना सत्य दुनिया के सामने प्रस्तुत किया गया है वह आध्यात्मिकता के द्वारा, उन आध्यात्मिक लोगों ने किया, जो ध्यान की गहराई में चलते चले गये, डुबकियां लेते रहे और गहरे-से-गहरे उतरते चले गये। भौतिक क्षेत्र में भी उन व्यक्तियों ने ही अपूर्व
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