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अमूर्त चिन्तन
पाचन कमजोर है। भोजन के बाद वज्रासन में बैठो, पाचन की दुर्बलता मिट जाएगी ।
पाचन की गड़बड़ी है। भोजन के बाद दाएं नथुने से पन्द्रह मिनट तक श्वास लो, पाचन स्वस्थ होने लगेगा I
पाचन दुर्बल है । महामुद्रा का प्रयोग करो, पाचन ठीक होने लगेगा। प्रत्येक समस्या के समाधान के लिए आसन और नाड़ियों का प्रयोग तथा स्वर का प्रयोग खोजा गया था। हजारों आसनों का प्रयोग होने लगा । शारीरिक बीमारी हो तो आसनों का प्रयोग किया जा सकता है और मानसिक बीमारी के लिए भी आसनों का प्रयोग किया जा सकता है ।
ये सारे तथ्य स्वावलंबन और आत्मानुशासन के लिए खोजे गए थे । युवक और स्वावलम्बन
युवकों की शक्ति आज एक समस्या बन रही है । वह ध्वंस की ओर जा रही है । सारे देश की स्थिति को देखिए। भारत के युवकों की शक्ति जितनी निर्माणात्मक कार्यों में नहीं लग रही है, उससे कहीं अधिक हिंसात्मक कामों में लग रही है। आए दिन समस्याओं का सामना सबको करना पड़ रहा है। इसका कारण यह है कि हमारी शक्ति का ठीक नियोजन नहीं हो रहा है। युवक को शक्ति का पर्यायवाची मान लिया है। युवक अर्थात् शक्ति और शक्ति अर्थात् युवक । युवक शक्ति का प्रतिनिधि होता है । यह प्रतिनिधित्व तो उसने स्वीकार कर लिया किन्तु उसका ठीक नियोजन नहीं किया । इस नियोजन की गड़बड़ी के कारण आज देश में बहुत सारी समस्याएं पैदा हो गयी हैं ।
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आचार्यश्री तुलसी का उदाहरण हमारे सामने है। जब आचार्यश्री की अवस्था मात्र बाईस वर्ष की थी, उस समय आपने एक शक्तिशाली संघ का नेतृत्व अपने कंधों पर लिया और उसका विकास किया। शक्ति का उपयोग रचनात्मक कामों में किया । आचार्यश्री का प्रारम्भिक सूत्र था - 'हमें ध्वंस की ओर अपनी शक्ति नहीं लगानी है।' दुनिया में सबका विरोध होता है । कोई ऐसा नहीं है कि जिसका विरोध नहीं होता । सूर्य अकारण प्रकाश देता है, पर उसकी भी आलोचना होती है । सूर्य का भी विरोध होता है। हवा अकारण हमें लाभान्वित करती है, प्राण देती है, जीवन देती हैं, पर उसका भी विरोध होता है ।
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काका कालेलकर बहुत वर्ष पहले दिल्ली में आचार्यश्री से मिलने आए । आते ही बोले, 'मैं आपसे मिल रहा हूं, उसके पीछे एक प्रेरणा है । वह यह कि मेरे पास आपके विरोध में इतना साहित्य आया कि ढेर लग गया। मैंने वह साहित्य देखकर यह निष्कर्ष निकाला कि जिस व्यक्ति का इतना विरोध होता है, वह निश्चित ही जीवित व्यक्ति है। मुर्दे का विरोध कोई नहीं करता। कहने की
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